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________________ [२.१२] द्रव्यकर्म + भावकर्म २९७ दादाश्री : यही पट्टियाँ(द्रव्यकर्म) अगले जन्म का कारण हैं, जो आत्मा को अंधा बना देती हैं। जिनके कारण भाव करता है, नहीं तो आत्मा भाव करे ही नहीं कभी भी। प्रश्नकर्ता : भाव तो प्रतिष्ठित आत्मा ही करता है न दादा? शुद्धात्मा तो करता ही नहीं न? दादाश्री : वस्तुस्थिति में प्रतिष्ठित आत्मा भी भाव करता ही नहीं है न! शुद्धात्मा भी भाव नहीं करता। यह तो जो ऐसा मानता है कि 'मैं चंदूभाई ही हूँ', वह व्यवहार आत्मा भाव करता है। प्रतिष्ठित आत्मा तो भाव से ही बना है न! यदि भाव नहीं होता तो प्रतिष्ठित आत्मा होता ही नहीं। ये उल्टी पट्टयाँ ही बाधक हैं। अब ये उल्टी पट्टियाँ क्या है? पूर्व के अपने हिसाब का जो फल है वही हमें दिखाता है। प्रश्नकर्ता : उसका ज़ोर कितना होता है? दादाश्री : ज़ोर तो ऐसा है न कि उसके मूल कारण का जितना ज़ोर रहा होगा न, उतना ही कार्य में ज़ोर आएगा। कारण ज़ोरदार होगा न तो कार्य भी ज़ोरदार होगा। कारण ढीला होगा तो कार्य भी ढीला। प्रश्नकर्ता : लेकिन यदि कारण ज़ोरदार होगा तो वह खींच ले जाएगा न? दादाश्री : अरे, इंसान को खींच ले जाना तो क्या लेकिन उल्टा पटक देता है न! सारी उल्टी पट्टियाँ, उल्टा दिखाती हैं। आपको उल्टा दिखाती हैं या सीधा दिखाती हैं? प्रश्नकर्ता : दादा, अब सीधा ही दिखाई देता है। दादाश्री : ऐसा! उल्टा देखा था, कभी पहले? प्रश्नकर्ता : बहुत सारा। दादाश्री : ऐसा! अब नहीं दिखाई देता? हम ज्ञान देते हैं न, उससे
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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