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________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म २७३ प्रश्नकर्ता : और जो चार अघाती हैं, वे अंत तक रहेंगे? दादाश्री : वे तो, जब तक देह है तब तक रहेंगे। तब होती है ज्ञानलब्धि प्रश्नकर्ता : ज्ञानलब्धि किस तरह से उत्पन्न होती है? दादाश्री : यशनाम कर्म होता है और सभी कुछ मिल जाता है। प्रश्नकर्ता : सिर्फ यशनाम कर्म अकेले से ही? दादाश्री : बाकी सब भी है न! बाकी सब भी मिलता है अंदर। प्रश्नकर्ता : और क्या-क्या मिलता है? दादाश्री : ज्ञानावरण हट जाए, दर्शनावरण हट जाए, मोहनीय हट जाए न और यह यशनाम कर्म मिले, तब ज्ञानलब्धि होती है। बाकी लोगों के तो दर्शनावरण, मोहनीय और अंतराय कुछ भी नहीं छूटते। ये चार तो नहीं छूटते और बाकी के चार कर्म भी बंधते हैं। शाता वेदनीय बंधता है, उच्च नामकर्म बंधता है, गोत्र बंधता है और उच्च आयुष्य बंधन होता है, लेकिन वे अघाती नहीं छूटते। अतंराय नहीं टूटते, मोह भी नहीं टूटता उनका। इस संसार में से मोह छूट जाएगा, तब इसमें मोह आएगा। दादा देते हैं संपूर्ण समाधान दादाश्री : घातीकर्म खत्म हो जाएँ तभी प्रथम मोक्ष होता है - कारण मोक्ष होता है और जब अघाती भी खत्म हो जाएँ, तब आत्यंतिक मोक्ष होता है - निर्वाण काल के समय। जब से सम्यक् दर्शन हो जाता है, तभी से निरंतर संवरपूर्वक निर्जरा (नया कर्म बीज नहीं डलें, बिना कर्मफल पूरा हो जाना) होती रहती है। जगत् के लोगों में बंधपूर्वक निर्जरा और यहाँ संवरपूर्वक निर्जरा है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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