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________________ [२.१०] घाती-अघाती कर्म अघाती कर्म बचे हैं। घनघाती छूट चुके हैं । ये घनघाती थोड़े बहुत अंशों में बचे हैं, वे भी एकाध जन्म के बाकी बचे हैं। जो घाती थे, वे एकाध जन्म के बाकी हैं। छूट चुके हैं फिर भी ऐसा क्यों पूछ रहे हो? हाँ, अघाती नहीं छूटे हैं। जिनसे घात नहीं होता वे नहीं छूटे हैं। वे अपने आप छूटते रहेंगे। २७१ प्रश्नकर्ता : घातीकर्म पूरी तरह से तो नहीं छूटते न, दादा ? क्योंकि घातीकर्म पूर्णरूप से छूट जाएँ तब तो केवलज्ञान हो जाएगा न? दादाश्री : हाँ, तो केवलज्ञान हो जाएगा। यानी हमें एक जन्म मिले इतने कर्म हैं बाकी सब घट गए हैं न ! छूट चुके हैं तभी तो अंदर निराकुलता रहती है, नहीं तो रहती ही नहीं न! एक जन्म जितना बाकी बचा है । फिर अगर किसी को चार जन्म करने हों तो ? क्या हम उन्हें मना कर सकते हैं? यदि मेरे कहे अनुसार चले तो एक जन्म से ज़्यादा, दूसरा जन्म नहीं होगा । अब रहा चारित्रमोह प्रश्नकर्ता : ऐसा कब पता चलता है कि ज्ञानावरण कर्म चला गया है, दर्शनावरण कर्म चला गया है? दादाश्री : जब हमें सभी सूझ पड़ने लगे तब समझना कि दर्शनावरण चला गया। अब पज़ल खड़ी नहीं होती है न? खड़ी हो तो अपने आप ही खत्म हो जाती है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : यानी कि दर्शनावरण पूरा ही चला गया। उसके बाद ज्ञानावरण कुछ अंशों तक बाकी बचा, यह वह है । मोहनीय पूरा ही चला गया है। इसीलिए सारी चिंताएँ बंद हो गई हैं। मोहनीय पूरा ही चला गया है । और फिर चारित्र मोहनीय बचा है । कोई 'आइए साहब, आइए साहब' करे, फिर भी हमें उसमें रुचि नहीं है अब। पहले जो रुचि थी, वह रुचि खत्म हो गई है । या फिर अगर लोग अपमान करें तो उसमें भी रुचि नहीं है । लोकनिंद्य गोत्र हो तो क्या करें? लोग निंदा करें तो उसमें भी रुचि नहीं है । लोकपूज्य गोत्र, लोग तारीफ
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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