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________________ [२.७] नामकर्म २२७ होती। कहीं गप्प होती होगी? यह वीतरागों की कैसी बात है! अक्लमंदीवाली बात!! उसके बाद यह जो शरीर है, नाम रूप वह भी द्रव्यकर्म है लेकिन इससे कोई परेशानी नहीं है, शरीर से। वह (उल्टी दृष्टि) खत्म हो जानी चाहिए। जो उल्टा देखता है न, उसके आधार पर यह सब खड़ा होता है इसलिए रूट कॉज़ खत्म हो जाना चाहिए। प्रश्नकर्ता : इस भ्रांति की शुरुआत क्या नामकर्म से होती है, दादा? दादाश्री : नामकर्म से भ्रांति की शुरुआत होती है। नाम पड़ते ही भ्रांति की शुरुआत हो गई। कोई भी नाम पड़ा जैसे काई या गुलाब, तभी से भ्रांति की शुरुआत हो गई। महावीर भगवान का कैसा नामकर्म प्रश्नकर्ता : बहुत स्ट्रोंगली(ज़ोर देकर) ऐसा कहते हैं कि अच्छा गोत्र मिलना, अच्छी कीर्ति मिलना, अच्छा शरीर मिलना व वेदनीय भी पूर्वजन्म के कर्म हों, तभी मिलती है। पूर्वजन्म के नामकर्म हों तभी मिलता है, उसके बिना नहीं मिल सकता। दादाश्री : नहीं मिल सकता। यदि अंदर नाम, गोत्र वगैरह के लक्षण अच्छे हों, तभी मिलते हैं। छप्पन प्रकार के लक्षण, वे सभी प्रकार के लक्षण अच्छे हैं, और तीर्थंकरों की तो बात ही अलग है और ऊपर से तीर्थंकर नामकर्म। तीर्थंकर पद नामकर्म और गोत्रकर्म दोनों में आता है। महावीर भगवान का नामकर्म कैसा होगा! थे बहुत ही रूपवान । देखते ही दिल में ठंडक हो जाए? सिर्फ देखने से ही दिल को ठंडक हो जाए। वे क्या हीरे के बने हुए थे? हीरे से भी दिल को ठंडक नहीं होती। इतना बड़ा हीरा देखें तो थोड़ी देर के लिए देखने का मन होता है। बाद में कुछ भी नहीं। इसमें तो अपना मन टूटता ही नहीं कभी भी। देखते ही रहने का मन होता है, उनकी लावण्यता इतनी अधिक, सुंदरता! तीर्थंकर क्या यों ही बन जाता है कोई? पूरी दुनिया का नूर आ जाता है एक व्यक्ति में!
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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