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________________ १९८ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) दादाश्री : दर्शन में आ जाएगा। कुछ लोगों को तो दर्शन में ज़्यादा आ जाता है लेकिन वर्तन में आने के भारी अंतराय होते हैं। बाकी दर्शन बहुत ऊँचा है। समझने में कुछ भी बाकी नहीं रखा। प्रश्नकर्ता : वह तो मनोबल की कमी है या सिर्फ अंतराय ही हैं? दादाश्री : वे भारी अंतराय डाले हुए हैं, दर्शन से गुत्थियाँ सुलझ गई हैं। अंतराय टूटने से प्राप्ति ज्ञान की प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, ज्ञान की प्रतीति के लिए कई बार अंतराय बहुत ज़रूरी होते हैं। अंतराय हों, तभी अपनी परीक्षा हो सकती है। दादाश्री : हाँ, अपनी पूरी परीक्षा हो जाती है कि अपना क्या हिसाब है? हमने कहाँ-कहाँ दु:ख दिए थे। यह दुःख देने का फल है न! जो अंतराय डाले हैं, उसी का फल आया है ! ज्ञान प्राप्ति के अंतराय पड़ते हैं, इसीलिए ज्ञान नहीं मिल पाता न! बाकी, (अंतराय) उपकारक तो कैसे हो सकता है? ज्ञान प्राप्त करने की की ज़रूरत है। हमें भोजन करना हो और उस भोजन की ज़रूरत है तो भोजन में अंतराय डालने से हमें क्या मिलता है? लेकिन भूख लगती है न हमें? अर्थात् अंतराय नहीं आएँगे तभी प्राप्ति होगी। नहीं तोड़नी चाहिए मूर्ति या फोटो अपनी पुस्तकें फ्री ऑफ कॉस्ट ले और फिर उन्हें बेच दे या फिर अगर कोई ऐसा क्रोधी हो तो वह पत्नी से कहता है, 'कैसी किताबें हैं ये दादा की ! तुझे मना किया था न!' लेकर जला देता है, ऐसा हो सकता है। उससे इतना बड़ा ज्ञानांतराय पड़ता है कि हज़ारों जन्मों के बाद भी ठिकाना नहीं पड़ेगा। और ज्ञानांतराय पडता है तब उसके साथ ही दर्शनांतराय पडे बगैर रहते ही नहीं। ये दोनों साथ में ही होते हैं। ज्ञानांतराय के साथ में, आठों अंतराय पड़ जाते हैं। प्रश्नकर्ता : ज्ञानांतराय के साथ?
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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