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________________ १७२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) हम हैं उसी का ज़हर है न यह तो, उस ज़हर को खत्म कर दो। देखा उसी का यह ज़हर है न! प्रश्नकर्ता : आज यह जो समझाया है, उससे तो कईयों के सोल्युशन निकल जाएँगे। सभी अंतराय ही डालते रहते हैं। हमें अगर ऐसा दिखे कि इससे इनका अहित हो रहा है तो फिर उस चीज़ के लिए तो हमें सामनेवाले को मना कर देना चाहिए न ! दादाश्री : खाने-पीने से जो अहित होता है उसके लिए? प्रश्नकर्ता : खाने-पीने से, कोई चीज़ खाने से...... दादाश्री : हमें मना करने की ज़रूरत नहीं है। हमें उसे यह समझाने की ज़रूरत है कि 'भाई, ऐसा करने से शरीर को ऐसा नुकसान होता है वगैरह वगैरह।' 'चल यह नहीं खाना है, ऐसा पुलिस एक्शन नहीं लेना है। विस्तार से समझाकर कहना कि 'इसका फल ऐसा आएगा। इससे क्या फायदा मिलेगा?' प्रश्नकर्ता : ऐसे बहुत सारे संयोग आते हैं, कदम-कदम पर होता है। दादाश्री : वही बताया है न यह। ऐसा सामान्य ज्ञान बाहर नहीं मिलता। इसलिए तो मैं बता रहा हूँ न ! सभी लोग मिलकर कुछ बातचीत करो तो ये सामान्य ज्ञान की बातें निकलेंगी। आपने अंतराय बोला, उस पर से यह बात निकली! यानी कि अच्छा है, पूछो, कुछ बात-चीत करो। प्रश्नकर्ता : अब ये जो अंतराय हैं, क्या इनमें से कुछ पॉज़िटिव अंतराय होते हैं और कुछ नेगेटिव होते हैं? खाने में उसने ठीक मात्रा में लिया और हम अगर कहें कि तू ज़रा ज़्यादा ले, आग्रह करें, उस पर दबाव डालें तो वह भी अंतराय है क्या? दादाश्री : उससे अंतराय टूटा। खाना खाते हुऐ उठा दिया तो अंतराय डाला। अगर मैं लोगों से कहूँ कि 'भिखारियों को कुछ नहीं देना
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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