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________________ १५४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : वह कब टूटेगा? दादाश्री : वह तो जब हम ज्ञान देते हैं तब छूट ही जाता है न! दर्शनावरण तो छूट जाता है। उसके बाद उसमें उसके भावक रह जाते हैं। उसके जो भावक रह जाते हैं, वे करवाते हैं। उस घड़ी हमें अलग रहना चाहिए। दर्शनावरण अर्थात् जो कॉज़ेज़ को उत्पन्न करता है। नासमझी से कॉज़ेज़ उत्पन्न करता है। 'मैं चंदूभाई हूँ,' यह जो रोंग बिलीफ है, वही दर्शनावरण। प्रश्नकर्ता : आप जो ज्ञानविधि करवाते हैं न, उसमें क्या दर्शनावरणीय टूटने से हमें दर्शन होता है? दादाश्री : जब हम ज्ञान देते हैं तब उसे ऐसा भान होता है कि कुछ हैं,' मतलब दर्शनावरण गया। उसके बाद क्या है' वह डिसाइड हो जाता है, अनुभव होने लगता है तो इसका मतलब ज्ञानावरण गया। दर्शनावरण तो टूट ही चुका है न! पूरा ही टूट गया है। तो हम जो देते हैं, वह केवलदर्शन है। वह क्षायक दर्शन है। दर्शनावरण टूट जाने के बाद क्षायक दर्शन कहा जाता है। प्रश्नकर्ता : उसी प्रकार से दर्शनावरण और मिथ्यादर्शन में क्या फर्क है। दादाश्री : मिथ्यादर्शन भी चला गया है और दर्शनावरण भी चला गया है। ज्ञानावरणीय नहीं गया है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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