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________________ १५२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) आप कहो कि 'अरे, अभी कहाँ से आ गए,' तो सूझ कम हो जाएगी। अर्थात् हमने खुद अपने आप ही पट्टियाँ बाँधी हैं। पट्टियाँ बाँधनेवाला अन्य कोई है ही नहीं। आपकी खुद की ही पट्टियों की वजह से आप भटक रहे हो। प्रश्नकर्ता : समझ और सूझ में क्या फर्क है? दादाश्री : समझ को सूझ कहते हैं। समझ दर्शन है, वही आगे बढ़ते-बढ़ते ठेठ केवलदर्शन तक पहुँचता है। अंत में होता है दर्शन निरावरण प्रश्नकर्ता : सूझ और दर्शन एक ही हैं? दादाश्री : एक ज़रूर हैं लेकिन लोग दर्शन को बहुत निम्न भाषा में ले जाते हैं। दर्शन तो बहुत उच्च वस्तु है। वीतरागों ने सूझ को दर्शन कहा है। ग्यारहवें मील से चलते-चलते आगे पहुँचे तो वहाँ का दर्शन होता है। जैसेजैसे आगे चले, वैसे-वैसे उसका ‘डेवेलपमेन्ट' बढ़ता जाता है और वैसे-वैसे उसका दर्शन और भी बढ़ता जाता है और एक दिन अंदर लाइट हो जाए कि 'मैं यह नहीं हूँ, लेकिन मैं आत्मा हूँ' तो दर्शन निरावरण हो जाता है! प्रश्नकर्ता : सूझ कहाँ से आती है? दादाश्री : जैसे-जैसे आवरण खुलता जाता है, वैसे-वैसे आगे की सूझ पड़ती जाती है। इस तरह जैसे-जैसे प्रवाह में बहता हुआ आता है, वैसे-वैसे आवरण खुलता जाता है और वैसे-वैसे उसे सूझ पड़ती जाती है। सूझ निरंतर बढ़ती ही है। प्रश्नकर्ता : यह जो सूझ है, वह क्या आत्मा प्रेरित होगी? आत्मा प्रेरित सूझ होनी चाहिए न, तभी हो पाएगा न? दादाश्री : वह आत्मा प्रेरित सूझ नहीं है। वह आत्मा का एक भाग है कि जो आवृत है और वह आवरण में से निकला है, उदय में आ चुका भाग है सूझ नाम का! और वही दर्शनावरण की तरह माना जाता है और इसमें से सूझ बढ़ते-बढ़ते अंत में वह सर्वदर्शी हो जाता है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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