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________________ [२.२] ज्ञानावरण कर्म १४५ प्रश्नकर्ता : चखेंगे तभी पता चलेगा। दादाश्री : चखेंगे तब तो... वह तो फिर बुद्धि है। यों ही (बिना चखे) जान पाओ, तब। लेकिन यह ज्ञानावरण बाधा डालता है, ज्ञान पर आवरण है। अपना आवरण हटता है न, अगर चखें तो? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : उसे कहते हैं ज्ञानावरण हटाना। जानकारी पता नहीं चलती, वह कहलाता है ज्ञानावरण। कड़वा हो तो सूंघता है। सूंघकर जो ज्ञान होता है, वह इन्द्रिय ज्ञान कहलाता है जबकि वह (आत्मा का) है डायरेक्ट ज्ञान। ज्ञान डायरेक्ट होना चाहिए। ज्ञानावरण की पट्टियों की वजह से ही तो सही चीज़ अनुभव में ही नहीं आती कि सच्चा सुख क्या है? 'मैं कौन हूँ?' उसका भान ही नहीं होता, वह सब ज्ञानावरण है। वही अज्ञान है। इसी सारे अज्ञान में रहता है पूरा जगत्। इसीलिए जब आगे जाकर फिर ज्ञान मिलता है तब ज्ञानावरण से मुक्त हो जाता है। उल्टी समझ से चल रहा है यह तो.... प्रश्नकर्ता : किसी जगह पर एक प्रवचन में सुना था कि खाना खाते समय अगर हम बातें करें तो ज्ञानावरणीय कर्म बंधता है। क्या ऐसा है? दादाश्री : पूरे दिन ज्ञानावरण ही बंधते हैं न! सिर्फ बोलने से ही नहीं, पूरे दिन कर्म ही बंधते रहते हैं। सिर्फ ज्ञानावरण ही नहीं, ऐसे सारे भयंकर मोहनीय कर्म बंधते हैं। धर्मस्थान पर बल्कि बढ़े आवरण धर्म का व्याख्यान सुनने जाए, उस समय ज्ञानावरण कर्म का बंधन होता है। ऐसी बात कोई मानेगा क्या? सभी प्रतिरोध करेंगे न? मारो इन दादा को!! दादा ही बेकार है। अरे, दादा की बात को समझो न! मेरे ऐसे शब्द यों ही नहीं निकल जाते। बात को समझो तो सही! व्याख्यान में गुरुजी बोलते रहते हैं, और वह सुनता रहता है। इस कान से सुनता है और उस
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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