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________________ [२.१] द्रव्यकर्म त्रिकर्म से बंधे हुए हैं जीव | प्रश्नकर्ता : एक चीज़ पर हमारा सत्संग हो रहा था कि द्रव्यकर्म का अर्थ क्या है? भावकर्म, द्रव्यकर्म, नोकर्म की हम जो बात करते हैं, वह ज़रा समझाइए न हमें! द्रव्यकर्म किसे कहते हैं? भावकर्म किसे कहते हैं? नोकर्म किसे कहते हैं? दादाश्री : हाँ, समझाते हैं, अभी समझाते हैं। द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म। चौथे प्रकार का कोई कर्म है नहीं। इन तीन कर्मों को लेकर ही पूरे जगत् के जीव बंधे हुए हैं। ये तीन ही गाँठे हैं, इसी कारण से ये जीव जीवात्मा के रूप में रहे हुए हैं। ये तीन गाँठे टूट जाएँ तो परमात्मा हो जाए। अब तीन जनों को पहचानना है। जैसे कि हम तीन लोगों को पहचान लें, उसके बाद भूलते नहीं हैं, उसी प्रकार ये कर्म तीन प्रकार के हैं। द्रव्यकर्म, भावकर्म और नोकर्म। अन्य कोई कर्म नहीं होते। सभी कर्मों का समावेश इन तीनों में हो जाता है। इन्हें पहचान लेना है। कितने ही लोग क्या समझते हैं कि ये जो भावकर्म कर रहे हैं, उनके फल स्वरूप ये सब द्रव्यकर्म आएँगे। खाने का भाव किया, वह भावकर्म है और खाना खाया, उसे द्रव्यकर्म कहते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं है। द्रव्यकर्म विभक्त हुए आठ प्रकार में.... पूरी जिंदगी ये जो सब कर्म किए हैं, उनका सार आठ भागों में
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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