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________________ [१.१०] प्रकृति को निहार चुका, वही परमात्मा १३५ जो पोतापणां हो गया है, उसका नाश हो जाना चाहिए। पोतापणां को तो चला ही जाना चाहिए धीरे-धीरे। प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान में रहने से यह धीरे-धीरे चला जाएगा न, दादा? दादाश्री : पोतापणां को निहारने से पोतापणां धीरे-धीरे कम होता जाता है। उसके लिए बहुत जल्दबाजी करने जैसा नहीं है। इस पोतापणां का निकल जाना कोई ऐसी-वैसी बात नहीं है। पोतापणां गया तो खुद भगवान ही हो गया। प्रश्नकर्ता : पोतापणे में क्या-क्या निहारना है? दादाश्री : पूरी प्रकृति को ही निहारना है। पूरी प्रकृति पोतापणां ही है। वहीं पर मानता था न कि 'यह मैं हूँ।' 'जो' प्राकृत भाग से मुक्त है, ऐसा 'जिसे' 'ज्ञान' है, वह 'ज्ञानी' है। खुला प्रकृति का विज्ञान आर-पार ये सभी खोजें नई हैं और अक्रम विज्ञान की हैं। प्रश्नकर्ता : दादा, आपके द्वारा आत्मा का साइन्स तो पूरी तरह से निकला ही है, दूसरी तरफ प्रकृति का साइन्स भी आर-पार पूर्णाहुति तक का है। दादाश्री : हाँ, ठीक बात है। प्रश्नकर्ता : प्रकृति का विज्ञान कहीं भी नहीं बताया गया है, दादा। कोई भी वर्णन नहीं कर सका है। दादाश्री : लेकिन कैसे करेगा? इसे जानना ही मुश्किल है। प्रश्नकर्ता : किसी भी शास्त्र में प्रकृति का ज्ञान नहीं है, दादा। दादाश्री : शास्त्र कहनेवाले कौन है? प्रकृति में रहनेवाले। प्रकृति में रहकर, प्रकृति को जाननेवाले। लेकिन वे प्रकृति को पूरा नहीं देख
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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