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________________ [१.९] पुरुष में से पुरुषोतम प्रश्नकर्ता : खुद एक सेकन्ड के लिए भी पुरुष हो जाए तो बहुत हो गया। १२१ दादाश्री : एक सेकन्ड के लिए भी कोई पुरुष नहीं हुआ है। इन आनंदघन जी महाराज जैसों ने क्या कहा है? 'हे अजीतनाथ भगवान ! आपने तो क्रोध-मान-माया-लोभ और राग-द्वेष को जीत लिया इसलिए पुरुष कहलाए, लेकिन इन लोगों ने मुझे जीत लिया है तो मैं पुरुष कैसे कहलाऊँगा? तो फिर पुरुष कैसे बन सकते हैं! एक सेकन्ड के लिए भी पुरुष हो जाए न, तो परमात्मा बन जाएगा।' पुरुष अंतरात्मा है और पुरुषोत्तम परमात्मा प्रश्नकर्ता : अगर हम उसे पुरुष कहते हैं तो प्रकृति की ये सारी लीलाएँ, उस बेचारे ने क्यों भोगीं ? दादाश्री : पुरुष भोगता ही नहीं है । जब तक भोगे, तब तक वह पुरुष नहीं कहलाता। जब तक भोगता है तब तक अहंकार कहलाता है । जब तक भोगता है, तब तक 'उसे' यह भ्रांति है, इसलिए अहंकार कहलाता है वह और उसका भोगना बंद हुआ कि वह पुरुष बन जाता है। 'खुद' खुद के स्वभाव का भोक्ता बने, तब पुरुष बन सकता है और विशेष भाव का भोक्ता बने, तब तक अहंकार है । प्रश्नकर्ता : स्वभाव का भोक्ता यानी क्या ? दादाश्री : स्वभाव का भोक्ता बने तो पुरुष बन जाए । आत्मस्वभाव का भोक्ता बने तो पुरुष बन जाए और विशेष स्वभाव का भोक्ता बने तो अहंकार व जीवात्मा कहलाता है जबकि 'वह' (स्वभाव का भोक्ता) परमात्मा कहलाता है । अब जीवात्मा में से एकदम से परमात्मा नहीं हुआ जा सकता, इसलिए बीच में थोड़े समय तक अंतरात्मा की तरह रहना पड़ता है, विश्राम के लिए । जीवात्मा में जो कुछ इकट्ठा किया हुआ है, उसका निबेड़ा लाने तक अंतरात्मा की तरह रहना पड़ता है । उसके बाद जब इन सब का निबेड़ा आ जाएगा, तब खुद ही परमात्मा ! है ही T परमात्मा !
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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