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________________ १०४ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) अंदर का चार्ज हो चुका भाग यदि निकल जाए यानी कि सारा डिस्चार्ज हो जाए, तो फिर क्या बचेगा? दादाश्री : प्रकृति खुद ही चार्ज हो चुका भाग है इसलिए जब वह खत्म हो जाता है, तब प्रकृति भी खत्म हो जाती है। प्रकृति ही सारा डिस्चार्ज कर देती है। इसीलिए फिर कहते हैं न, कि चले जाना पड़ेगा भाई (मृत्यु हो जाएगी)। इतनी जल्दबाज़ी क्यों मचा रहा है? चले जाना पड़ेगा, डिस्चार्ज हो जाएगा तब ! तब मैंने पूछा, 'जल्दी जाना है?' प्रश्नकर्ता : तो दादा, क्या प्रकृति का स्वभाव ही ऐसा है कि डिस्चार्ज होती ही रहती है? दादाश्री : निरंतर। उसका स्वभाव ही है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् प्रकृति को मात्र देखते ही रहना है जैसा कि आप कहते हैं। प्रकृति डिस्चार्ज हो रही है उसे तू देखता रह, तो कभी न कभी प्रकृति खत्म हो जाएगी।' दादाश्री : हाँ, देखते रहो। किसी की पागल होती है, किसी की समझदार होती है, किसी की अर्ध पागल होती है, किसी की आधी समझदार होती है, ऐसी इन सभी प्रकृतियों को देखते रहना है। कोई कढ़ी ही खाता रहता है, कोई दाल ही खाता रहता है, कोई लड्डू ही खाता रहता है, कोई जलेबी ही खाता रहता है, इन सब को देखते रहना है। प्रकृति के गुण, अपनी प्रकृति के क्या गुण हैं, उन्हें देखते रहना है। आप नहीं जानते? प्रश्नकर्ता : जान सकते हैं न, क्यों नहीं जान सकते? उपयोग में रहें, वही न? दादाश्री : हाँ, देखते रहना है। प्रश्नकर्ता : सभी खुद की प्रकृति लेकर आए हुए हैं? दादाश्री : हाँ, प्रकृति लेकर आए हुए हैं। प्रकृति अर्थात् रिकॉर्ड
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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