SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [१.७] प्रकृति को ऐसे करो साफ... चाहिए कि 'ओहोहो! हम जानते थे, कि चंदूभाई में अक़्ल नहीं है लेकिन अब तो ये भी जानते हैं।' तब वह जुदापना रहेगा। इन भाई से हम रोज़ बात करते हैं, अगर कभी नहीं करें, तो उसका क्या कारण है? विचार आता है कि अरे, 'आज ऐसा क्यों?' तब पता चलता है कि जुदा रह सकता है। ऐसी चाबियाँ देते हैं हम। उसे चढ़ाते हैं और गिराते हैं, चढ़ाते हैं और गिराते हैं, ऐसा करते-करते ज्ञान प्राप्त करता है। हमारी सभी क्रियाएँ ज्ञान प्राप्ति करवाने के लिए हैं। हर एक के साथ अलग-अलग होती है, उसकी प्रकृति को देखकर! सभी की प्रकृति को देखकर यह करते हैं। प्रश्नकर्ता : हाँ, प्रकृति के अनुसार। दादाश्री : ऐसा ही होना चाहिए न? वह प्रकृति निकल ही जानी चाहिए। प्रकृति को तो निकालना ही पड़ेगा। पराई चीज़ कब तक रहेगी अपने पास? प्रश्नकर्ता : सही बात है। कोई चारा ही नहीं है प्रकृति निकालने के अलावा! दादाश्री : (हाँ)। हमारी तो निकाल दी कुदरत ने। ज्ञान से निकाल दी हमारी तो। आपकी तो हम निकालते हैं तभी जाती है न! निमित्त है न! काफी कुछ निकल गई है। अभी भी रात को प्रतिक्रमण करने पड़ते हैं न? अतः अपनी भूलें हैं, वे अब निकालनी हैं धीरे-धीरे। पता चलता है न बाद हम बुलाते नहीं हैं कि 'चंदूभाई आओ,' ऐसा कहकर, तो तब आपको समझ जाना है कि 'मुझे सावधान किया है।' और अगर बोलें तो प्रकृति निकलती रहती है। हम उनसे कहे कि 'आओ चंदूभाई' तब प्रकृति उछल पड़ती है बाहर । रौब में आ जाता है, लेकिन फिर आपको (कर्म) नहीं बंधते, फिर से नहीं बंधते। निकल जाने के बाद फिर से नहीं बंधते। उसमें आप तन्मयाकार न हो जाओ इसलिए हम एक दिन वापस वैसा ही करते हैं, बोलते नहीं हैं, तो फिर उतर जाता है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy