SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 175
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) प्रश्नकर्ता : आपके कहने के बाद अगर इनकी इच्छा होगी तो निकल जाएँगे न? दादाश्री : हाँ, इच्छा होती है लेकिन वापस थोड़ी देर बाद कहता है न, 'लेकिन मेरी समझ में नहीं आ रहा है।' तो फिर हो गया वापस जैसा था वैसा ही। कौन से थर्मामीटर के आधार पर तू पूछ रहा है? एक भी थर्मामीटर सही नहीं है। खुद के थर्मामीटर से देखता है कि '१०२ डिग्री बुखार चढ़ा।' फिर भी, यहाँ पड़ा रहेगा तो आत्मा प्राप्त हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : जो लोग दादा के चरणों में आ गए हैं, उन्हें आत्मा प्राप्त हो ही जाएगा न? दादाश्री : हाँ, उनका तो काम ही निकल जाएगा न! होती है प्रकृति विलय 'सामायिक' में आप शुद्धात्मा हो गए तो प्रकृति साहजिक हुई। जो साहजिक है वह तो डखोडखल (दखलंदाजी) करने दे वैसी होती नहीं है। और क्योंकि साहजिक हो गई है, तो वह व्यवस्थित है। अतः हम आप से ऐसा नहीं कहते कि 'तुझे खराब विचार आए तो तू जहर पी ले।' अब तो अगर खराब विचार आया तो खराब को जाना और अच्छा विचार आया तो अच्छे को जाना। लेकिन अब यह सब विलय कैसे होगा? कितना कुछ तो ऐसा है जो कंट्रोल में नहीं आ सकता। आप जो कह रहे हो वह ऐसी चीज़ है जो विलय नहीं हो सकती। उसका हमें रास्ता निकालना पड़ेगा। एकाध घंटे बैठकर ज्ञाता-ज्ञेय के संबंध से वह चीज़ विलय होगी। जिस भी प्रकृति को विलय करना हो, वह इस तरह से विलय हो सकती है। एक घंटा बैठकर और खुद ज्ञाता बनकर उन चीज़ों को अपने सामने ज्ञेय के रूप में देखो। तो वह प्रकृति धीरे-धीरे विलय होती जाएगी। सभी तरह की प्रकृतियाँ यहाँ पर खत्म हो सकती हैं, ऐसा है।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy