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________________ [१.६] क्या प्रकृति पर प्रभुत्व प्राप्त किया जा सकता है? पूछो तो मैं जवाब देता हूँ। यह सब भ्रांति में तो था ही न ! अच्छा और बुरा कहाँ नहीं था? प्रश्नकर्ता : अभी तक यही सब किया था न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है । भ्रांति में तो यह था ही न, लेकिन सेटिंग करते हुए ऐसा सब होता है । तब अगर वापस पूछोगे तो निकल जाएगा वापस। फिर थोड़ा समय बीत जाने पर वापस भूल जाते हो । फिर से वैसा आता है, वापस भूल जाते हो। ऐसे करते-करते वह कम होता जाएगा। सब से अंतिम स्टेज कौन सी है कि चंदूभाई क्या कर रहे हैं, उसे आप देखो और जानो, और जो हो गया, वही करेक्ट है । ये दो चीज़ें सब से अंतिम स्टेज हैं। ऐसे रहा जा सकता है या नहीं रहा जा सकता? ७९ प्रश्नकर्ता : रहा जा सकता है। दादाश्री : हाँ ! फिर क्या है ? वस्तु अपने हाथ में आ गई है। जब पतंग की डोर हाथ में आ जाए न, उसके बाद चाहे कितने भी गोते खाए, फिर क्या हर्ज है? खींचने से ठीक हो जाती है। पहले तो डोरी ही हाथ में नहीं थी, पतंग की डोरी ही हाथ में नहीं थी तो फिर गोते खाने पर वह हाथ में कैसे आती? प्रश्नकर्ता : प्रकृति की लगाम हाथ में आ गई, ऐसा कब कहा जा सकता है? दादाश्री : प्रकृति जब मोड़ी जा सके, उस दिन हमें पता चल जाएगा कि आज इसे मोड़ा जा सका। हमारा ( देखकर) पता नहीं चलता? प्रश्नकर्ता : प्रकृति दिखाई देती है लेकिन उसे मोड़ा नहीं जा सकता । दादाश्री : तो फिर वह ज़रा ज़्यादा कहलाएगा। जब तक वह सुने नहीं तब तक उसके साथ यह सिलसिला जारी रखना पड़ेगा, बाद में वह कभी न कभी सुनेगी। जिसे प्रकृति जीतनी ही है, उसे हरानेवाला कोई है ही नहीं ।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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