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________________ एविडेन्सेज़। इन दोनों को अलग कर दें, तभी जंग लगना रुकेगा। उसी प्रकार जब दो तत्व अलग हो जाएँगे, तभी प्रकृति नहीं बनेगी। अज्ञान से जो एक हो गया है, वह ज्ञान से अलग हो जाता है! मात्र जड़ और चेतन के सामीप्य भाव से ही भ्रांति खड़ी हो जाती है, ज्ञान बदलता है, पर को स्व मानता है और परकृति को स्वकृति मानता है। दो तत्वों के मिलने से विशेष परिणाम उत्पन्न होता है। उसमें दोनों तत्वों के स्वभाविक गुण इनटेक्ट (अक्षुण) रहते हैं लेकिन विशेष गुण उत्पन्न हो जाते हैं। जैसे किताब को दर्पण के सामने रखने से किताब स्वभाव नहीं बदलती, और दर्पण भी स्वभाव नहीं बदलता है, खुद के मूल स्वभाव में ही रहता है लेकिन विशेषभाव उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण से किताब एक्ज़ेक्ट दर्पण में प्रतिबिंबित होती है। जो व्यतिरेक गुण उत्पन्न हुए हैं, उनसे जो भाव उत्पन्न होता है, उसके आधार पर परमाणु चार्ज होते हैं और उसी अनुसार डिस्चार्ज होते हैं। डिस्चार्ज के समय सूक्ष्म में से स्थूल बनते हैं और रूपक में आते हैं। पुरुष, वह परमात्मा है और देह प्रकृति है। परमात्मा अकर्ता है और प्रकृति में जो परमाणु हैं, वे सक्रिय हैं। पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) परमाणुओं में क्रियावर्ती शक्ति है, जो कि स्वाभाविक रूप से क्रियाएँ करती रहती है। क्रिया सिर्फ पुद्गल की है। विषय का एक ही भाव हुआ कि उसके आधार पर अंदर परमाणु चार्ज होकर खिंचकर आत्मा पर चिपट जाते हैं। वे जब डिस्चार्ज होते हैं, रूपक में आते हैं तब स्त्री, पुत्र, अरे! पूरा संसार खड़ा कर देता है! 'खद' जैसा भाव करता है, विशेषभाव, तो पुद्गल का ऐसा गुण है कि वह वैसा ही बन जाता है! पूरे समसरण मार्ग में प्रकृति और चेतन दोनों अलग ही रहे हैं। प्रकृति का एक भी गुण आत्मा में नहीं है और आत्मा का एक भी गुण प्रकृति में नहीं है। दोनों सर्वथा भिन्न ही हैं, रहे हैं और रहेंगे। इसमें मात्र दृष्टि की ही भूल हो गई है, जिसे ज्ञानीपुरुष बदल देते हैं और राइट कर देते हैं। 15
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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