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________________ ६२ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) में मत आना!' लेकिन वह तो काट ही डालेगी। फिर चाहे वह हमने बनाई हो या किसी और ने क्योंकि मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट है। यह प्रकृति मिकेनिकल है अतः हमें दादा से ऐसा सीख लेना है, तो वह मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट ढीला पड़ जाएगा। हो सकता है या नहीं हो सकता ऐसा? हमारे पास से एक बार कला सीख जाओ। यह बोधकला अर्थात् अहिंसक कला है, हिंसक कला नहीं है। हाँ, मोक्ष में ले जाए ऐसी है। अतः अब यह जन्म बिगाड़ना मत! ज्ञान का परिणाम इस जन्म में या आगे जाकर? प्रश्नकर्ता : अपने एक महात्मा हैं, उन्होंने ज्ञान लिया है और अब अलौकिक के भाव करते हैं, होते हैं, तो उस अलौकिक के भावों का परिणाम अभी मिलेगा या आगे जाकर मिलेगा? दादाश्री : वह अभी भी मिलेगा और आगे जाकर भी मिलेगा, दोनों ही मिलेंगे। भाव का परिणाम फ्रेश भी मिलता है और आगे जाकर भी मिलता है। आगे जाकर वह प्रकृति के बनने से होता है और अभी उसकी लाइट का प्रकाश मिलता है हमें। हमने ज्ञान दिया उसके बाद इंसान क्या ठंडा (शांत) नहीं हो जाता? प्रश्नकर्ता : बहुत, हाँ! दादाश्री : वह भाव का परिणाम है। प्रश्नकर्ता : पूरा रस (की तीव्रता) भी बदल जाता है। दादाश्री : वह सबकुछ बदल जाता है। हल्का पड़ जाता है। कितने प्रकार से मुक्त हो गए हो! अब मोक्ष की भी जल्दबाज़ी करने की क्या ज़रूरत है? जिसकी जो प्रकृति है, वह प्रकृति छोड़ेगी नहीं। उस प्रकृति को भोगना ही पड़ेगा। समझ लेना है कि इस प्रकृति में मुझे क्या करना है। इतना ही समझ लेने की ज़रूरत है। प्रकृति बाँधकर लाए हैं। बेहद बाँधकर लाए हैं और काफी कुछ छूट गई है। ये तो बेहद बाँधकर लाए हैं। एक भी दिशा की गठरी बाकी नहीं रही। सभी गठरियाँ हैं, हर एक दिशा की!
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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