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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) अब वह जो आगे की बात है कि अपने महात्मा क्या करते हैं? बच्चों को डाँटते हैं, ऐसा सब करते हैं। महात्मा जानते हैं कि 'यह निर्दोष है।' वह भी उनकी लक्ष (जागृति) में है, आत्मा के रूप में निर्दोष है लेकिन देह के रूप में नहीं है इसलिए डाँट भी देते हैं। वे कब तक डाँटेंगे? जब तक ऐसा अभिप्राय है कि 'मैं इसे सुधारू,' तभी तक। अतः सुधारने के लिए ऐसा सब करते हैं। अतः हम दूसरों की प्रकृति को देखते ही रहते हैं। लेकिन जो बिल्कुल नज़दीक रहते हों, इन नीरू बहन जैसे, तो उन्हें ज़रा सुधारने का भाव रह गया है और वह गलत है। कभी हम बोल देते हैं, भूल निकाल बैठते हैं। प्रकृति की भूल नहीं देखनी चाहिए। ज्ञानी उसे कहते हैं... संपूर्ण ज्ञानी अर्थात् भगवान। भगवान किसे कहते हैं कि प्रकृति के दोषों को देखें ही नहीं। हालांकि हम निर्दोष तो देखते हैं। हमें कोई दोषित दिखाई ही नहीं देता, लेकिन थोड़ी सी भी भूल नहीं निकालनी चाहिए किसी की भी। उनके हाथ से हम पर अंगारे भी गिर जाएँ तो भी हमें भूल नहीं दिखनी चाहिए, लेकिन छोटी-छोटी बातों में भूल दिख जाती है कि इनका यह दोष कब निकलेगा, मन में ऐसा भाव आ जाता है लेकिन धकेलने की ज़रूरत ही नहीं है प्रकृति को। प्रकृति अपना रोल अदा किए बिना रहेगी नहीं और ये संसार के लोग क्या करते हैं? सामनेवाले को सुधारते हैं लेकिन वे खुद के सौ खोकर सुधारते हैं उसे। लेकिन उनके बाप ने भी सौ खोए थे और तभी जाकर ये सुधरे थे। प्रश्नकर्ता : अब दादा, ये जो सौ गँवाए, सौ खोकर बच्चे को सुधारा तो उसने वे कौन से सौ खोए? दादाश्री : आत्मा के। लेकिन उसके पिता ने भी ऐसे ही खोए थे न! एक व्यक्ति तो ऐसा कह रहा था, 'समझता नहीं है, मैं तेरा बाप हूँ!' अरे घनचक्कर, कैसा पैदा हुआ है तू ! ऐसा बोला! और वह भी कॉलेजियन बेटे से! अरे, कैसा फादर है ! फिर मैंने बहुत डाँटा था। वह भी उसे समझाने के लिए कि 'अरे, क्या बच्चे के साथ ऐसे बात करनी चाहिए? आपकी क्या दशा होगी?' लेकिन हम तो ऐसे ज्ञानी हैं, हमें ऐसा सब नहीं कहना चाहिए!
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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