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________________ ३६ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) कहलाती है और जो शांत दिखनेवाली प्रकृति होती है न, वह भी बेलेन्स्ड कहलाती है। सप्रेस नहीं कहलाती। सप्रेस का लेना-देना नहीं है। कुछ लोगों को तो, चाँटा लगाने पर भी शांत दिखता है। अर्थात् वह कोई सप्रेस नहीं है, और बहादुर भी नहीं है। वह ज्ञान से नहीं है, उसकी प्रकृति ही ऐसी है। प्रश्नकर्ता : तो प्रकृति के कितने स्तर होते हैं, दादा? दादाश्री : बस, जितने प्रकार के विकल्प हैं, उतने ही प्रकार के प्रकृति के स्तर होते हैं। बिफरी हुई प्रकृति के सहज होने पर बढ़े शक्ति प्रश्नकर्ता : दादा ने ऐसा कहा है कि बिफरी हुई प्रकृति सहज हो जाए, तब शक्ति बढ़ने लगती है। दादाश्री : हाँ, शक्ति खूब बढ़ती है। प्रश्नकर्ता : ऐसा किस तरह से होता है? दादाश्री : बिफरी हुई प्रकृति यदि सहज हो जाए न, तो एकदम से शक्ति उत्पन्न होती है। खूब खींचती हैं बाहर से सारी शक्तियों को। हॉट (गरम) लोहा होता है न, उस हॉट लोहे के गोले पर पानी डालें तो क्या होता है? सारा पी जाता है, नीचे नहीं गिरने देता, एक भी बूंद। उसी तरह जो प्रकृति ऐसी बिफरी हुई होती है न, वह हॉट गोले जैसी होती है। फिर जैसे-जैसे ठंडी पड़ती जाती है, वैसे-वैसे उसकी शक्ति बढ़ती जाती है। आखिर तो दोनों ही हैं वीतराग सामनेवाले की प्रकृति को पहचान जाएँ तो उसके साथ वीतरागता रहती है कि यह गुलाब का पौधा है और काँटे लग रहे हैं, तो गुलाब में काँटें होते ही हैं ऐसा पक्का हो जाता है। उसके बाद काँटों पर गुस्सा नहीं आता। अगर हमें गुलाब चाहिए तो काँटे सहने ही पड़ेंगे। प्रकृति की पहचान होना, वह ज्ञान है और ज्ञान हो गया तो वर्तन में आएगा ही, बस।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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