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________________ आप्तवाणी-१३ (पूर्वार्ध) खाना। यह तो आज्ञा में ज़रा कच्चे पड़ जाते हैं, इसीलिए हेन्डल मारने को ज़रा ज़्यादा कहना पड़ता है। 'ऑफिस नहीं जाएँगे तो चलेगा,' अगर ऐसा कहें तो फिर उल्टा होगा लेकिन अगर ऐसा बोलें ही नहीं तो वह ऑफिस जाता ही रहेगा। इसमें हेन्डल नहीं घुमाना पड़ता। इसमें अगर ब्रेक नहीं मारेंगे तो चलता रहेगा। प्रश्नकर्ता : इसी तरह इन पाँच आज्ञा में नहीं रहने के लिए क्या ब्रेक लग जाते हैं? दादाश्री : ब्रेक तो दूसरे लगाए हुए हैं इसने। 'ऐसा नहीं करे तो क्या हर्ज है, ऐसा हो जाए तो क्या हर्ज है?' इस तरह के ब्रेक लगाए हुए हैं। ब्रेक उठाए नहीं हैं न अभी तक। वे ब्रेक तो लगे ही रहते हैं। वैसे ब्रेक लगाए हुए ही रहते हैं। वह सब तो चलता ही रहता है उसका, ब्रेक नहीं मारो तो चलता ही रहेगा, और ब्रेक मन से नहीं लगते, वाणी से लग जाते हैं। अगर वाणी से बोलें, तभी, वर्ना ब्रेक नहीं कहलाता। मन में खराब विचार हों तो ब्रेक नहीं कहलाता! प्रश्नकर्ता : अब अगर कोई काम हो और कहे कि 'मैं यह काम नहीं करूँगा, मैं यह काम नहीं करूँगा' तो क्या ब्रेक लग गया? दादाश्री : ब्रेक लग जाता है और फिर वह ब्रेक लगा ही रहता है। जब तक वह उठाए नहीं, तब तक वे ब्रेक घिसते ही रहते हैं। प्रश्नकर्ता : फिर भी व्यवस्थित तो वह काम करवाता ही रहता है न। दादाश्री : करवाता है लेकिन फिर भी ब्रेक लगे रहते हैं। लगाए हुए ब्रेक बिगड़ते ही रहते हैं। वे सभी ब्रेक उठा देने चाहिए।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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