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________________ [१.३] प्रकृति जैसे बनी है उसी अनुसार खुलती है मुझसे दो रोटियाँ खाई जाएँगी । उसने दो का नियम पक्का किया फिर कभी कोई बहुत दबाव डाले तो आधी ज़्यादा ले लेता है। २९ प्रश्नकर्ता : अर्थात् इस तरह से कौन-कौन सी मुख्य चीज़ें नियमवाली होनी चाहिए? दादाश्री : हर एक चीज़ । नियम से खाना चाहिए, नियमपूर्वक । फिर अगर नहीं खा पाए तब क्या करना चाहिए? रोने नहीं बैठना चाहिए । खाना-पीना, उठना-सोना मुख्य यही हैं न ! इनमें से कौन सा निकाल दोगे? सबकुछ नियमित रखने जैसा है। कुदरत का नियम अर्थात् जैसे सुबह उठे तो संडास-वंडास वगैरह सभी जैसा उसने नियम बनाया हो उस अनुसार सेट हो जाता है। प्रश्नकर्ता : प्रकृति का जो स्वभाव है और नियम, ये दोनों चीजें अलग हुई? दादाश्री : अलग ही हैं न ! हेबिच्युएटेड हो जाए तो वह स्वभाव कहलाता है। प्रश्नकर्ता : हाँ। सारे हेबिच्युएटेड को स्वभाव कहा है आपने, तो उस स्वभाव में से नियम में आना, ऐसा कोई पुरुषार्थ होता है? दादाश्री : नियम में ही होता है स्वभाव । एक इंसान को खट्टी चीज़ नहीं भाती । उसे हम अगर सौ रूपये दें तो भी वह खट्टा नहीं खाएगा। एक दूसरे इंसान को खट्टा भाता हो तो वह सामने से पाँच रूपए देकर भी खा जाएगा। प्रश्नकर्ता : हाँ। उसे प्रकृति का स्वभाव कहते हैं? दादाश्री : ये सब स्वभाव कहलाते हैं। प्रश्नकर्ता : और स्वभाव नियमपूर्वक ही होता है ? दादाश्री : नियम के अनुसार होता है । प्रश्नकर्ता : लेकिन अब खट्टे खाने की मात्रा सेट करना है। कितना
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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