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________________ [१.२] प्रकृति, वह है परिणाम स्वरूप से दादाश्री : प्रकृति को विरुद्ध (दिशा में) ले जाना गुनाह है। विरुद्ध नहीं ले जाना है। प्रकृति को सुधारना नहीं है। प्रकृति खुद की सत्ता में ही है। वह सत्ता, परिणाम है। प्रकृति की सत्ता परिणामिक है। वह परिणाम बदल नहीं सकेगा न? कॉज़ेज़ बदलने हैं, उसके बजाय लोग प्रकृति को बदलने जाते हैं। पुरुषार्थ किस आधार पर होता है? प्रश्नकर्ता : तो प्रकृति यह सब करती है या यह सब प्रकृति में हो रहा है? दादाश्री : प्रकृति ही है यह सब। प्रकृति क्या है, वह एक बार जान लेना चाहिए। प्रकृति अर्थात् जैसे आम के पेड़ पर आम लगते हैं न, तो वह आम लगता है या बनाया जा रहा है? प्रश्नकर्ता : लगता है। दादाश्री : उसी प्रकार से है यह प्रकृति। परीक्षा का जवाब आता है न, वह प्रकृति है और जो कॉज़ेज़ उत्पन्न होते हैं, वह भ्रांत पुरुषार्थ है। जितना उसे ज्ञान है, उसी अनुसार उसका पुरुषार्थ है। सतज्ञान, जो संपूर्ण ज्ञान है उसे भगवान कहा जाता है। वे भगवान जितने अंशों तक उसके पास हैं उतना ही उसका पुरुषार्थ है। वह ज्ञान के आधार पर कर रहा है। अभी किसी को गालियाँ दे, तो उसके बाद जो पछतावा करता है, वह ज्ञान से करता है या अज्ञान से करता है? प्रश्नकर्ता : ज्ञान से करता है। दादाश्री : तो वह ज्ञान का प्रताप है, अत: वहाँ पर पुरुषार्थ है। जितना-जितना ज्ञान भाग के लिए हेल्पिंग हुआ, वह सारा पुरुषार्थ है। बाकी की सारी प्रकृति है। विसर्जन प्रकृति के हाथ में है। सर्जन ज्ञान के अनुसार है और विसर्जन प्रकृति के अधीन है। विसर्जन में किसी का नहीं चलता। ओन्ली साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है यह सब। द वर्ल्ड इज़ द पज़ल इटसेल्फ। गॉड हेज़ नॉट पज़ल्ड दिस वर्ल्ड एट ऑल।
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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