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________________ का वर्णन अलग होता है, बीच का अलग होता है और ठेठ दूसरे सिरे का अलग होता है इसलिए भासित विरोधाभास उत्पन्न हो जाता है। वास्तव में एक ही चीज़ का वर्णन है, अलग-अलग स्टेजों का! यहाँ पर दादाश्री की वाणी जो कि अलग-अलग निमित्ताधीन, अलग-अलग क्षेत्र और काल में हर एक की अलग-अलग भावना के अधीन निकली है, उसका संकलन हुआ है। प्रकृति की एक से सौ तक की सभी बातें निकली हैं लेकिन निमित्त बदलने की वजह से पाठक को समझने में थोड़ी मुश्किल होती है। कभी ऐसा लगता है कि प्रश्न पुनःपुनः पूछे गए हैं लेकिन पूछनेवाले अलग-अलग व्यक्ति हैं, जबकि समझानेवाले मात्र परम ज्ञानी दादाश्री ही हैं। और आप्तवाणी पढ़नेवाला पाठक तो प्रत्येक समय एक ही व्यक्ति है, जिसे समग्र बोध ग्रहण करना है। ऐसी सूक्ष्मता से संकलन का प्रयास हुआ है जैसे परम पूज्य दादाश्री का एक ही व्यक्ति के साथ वार्तालाप हो रहा हो। हाँ, प्रश्नोत्तरी रूपी वाणी में हर एक चीज़ के स्पष्टीकरण अलग-अलग तरह के लगते हैं, लेकिन वह अधिक से अधिक गहराई के सोपान तक ले जानेवाले होते हैं ! जो गहराई से स्टडी करनेवाले को समझ में आएगा। इस प्रकार सब करने के बावजूद भी मूल आशय से आशय का पकड़ में आना, वह तो दुर्लभ, दुर्लभ, दुर्लभ ही लगता है! परम पूज्य दादाश्री की वाणी की धारा में एक ही चीज़ के लिए अलग-अलग शब्द निकले होते हैं, जैसे कि प्रकृति, पुद्गल, अहंकार वगैरह वगैरह। तो कहीं किसी जगह पर अलग-अलग चीज़ों के लिए एक ही शब्द का उपयोग हुआ है। उदाहरण के तौर पर 'मैं' का उपयोग अहंकार के लिए भी हुआ है तो 'मैं' का उपयोग आत्मा के लिए भी हुआ है (मैं, बावो और मंगलदास में)। महात्माओं को उसे योग्य रूप से समझकर लेना है। सैद्धांतिक समझ के विशेष स्पष्टीकरण देने के लिए मेटर में कहीं-कहीं पर ज़रूरत के मुताबिक ब्रेकेट में संपादकीय नोट रखा गया है, जो पाठक के लिए समझने में सहायक होगा। प्रस्तुत ग्रंथ के पूर्वार्ध में द्रव्यकर्म के आठो प्रकारों को विस्तारपूर्वक 10
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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