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________________ [११] प्रकृति किस तरह बनती है ? के बारे में समझ में नहीं आता । यहाँ पर ऐसा हो गया है । यह किस तरह से हुआ, ऐसा लगता है । जिस प्रकार पानी के रेले विज्ञान से बनते हैं, उसी प्रकार प्रकृति भी विज्ञान से बनी है । लोग समझते हैं कि इस प्रकृति का कोई अर्थ नहीं है। प्रकृति तो बन चुकी है। इसे तो लोग ऐसा कहते हैं कि 'भगवान ने रचा’। ‘भगवान ने लीला की' कहते हैं । प्रकृति का कर्ता कौन? प्रश्नकर्ता : और भी ज़्यादा समझने के लिए पूछ रहा हूँ कि प्रकृति को कर्तृत्व शक्ति कौन देता है? अंत में तो वह जड़ में से ही बनी हुई है न? दादाश्री : नहीं, यह प्रकृति पूरी तरह से जड़ नहीं है। वह निश्चेतनचेतन है और वह निश्चेतन - चेतन अचेतन नहीं है । प्रश्नकर्ता : उसे निरंतर परिवर्तनशील कहा जा सकता है? दादाश्री : वह तो बदलती रहती है, लेकिन यह प्रकृति निश्चेतनचेतन है। प्रश्नकर्ता : निश्चेतन-चेतन अर्थात् इसे कौन सी शक्ति कहा जा सकता है? दादाश्री : निश्चेतन-चेतन का अर्थ डिस्चार्ज चेतन है । अगर 'हमने ' किसी भी चीज़ को चार्ज किया हो तो फिर वह अपने आप डिस्चार्ज हो जाती है या नहीं? उसमें क्या 'हमें' कुछ करना पड़ता है? अपने आप ही क्रिया होती रहती है। इसमें किसी को कुछ करना नहीं पड़ता । अत: यह सब डिस्चार्ज है, इफेक्टिव है और इफेक्टिव शक्ति को मैं निश्चेतन-चेतन कहता हूँ। इफेक्टिव में चेतन नहीं होने के बावजूद भी चेतन जैसा दिखाई देता है, अतः निश्चेतन-चेतन कहता हूँ । प्रश्नकर्ता : प्रकृति में कर्तृत्वपना (कर्तापन) है?
SR No.030023
Book TitleAptavani Shreni 13 Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2015
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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