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________________ आप्तवाणी -८ अवस्थाएँ उत्पन्न हो गई हैं। यह संसार अर्थात् समसरण मार्ग और समसरण अर्थात् निरंतर परिवर्तन होता ही रहता है । इस परिवर्तन से आपको खुद के लिए ऐसा लगता, कि आपका आत्मा अशुद्ध ही है, लेकिन मुझे आपका आत्मा शुद्ध ही दिखता है । सिर्फ आपकी 'रोंग बिलीफ़' बैठी हुई है, इसलिए आप अशुद्ध मानते हैं । इन 'रोंग बिलीफ़ों' को मैं फ्रेक्चर कर दूँ और आपको ‘राइट बिलीफ़' बैठा दूँ, तब फिर आपको भी शुद्ध दिखेगा। यह तो सिर्फ मिथ्यादर्शन उत्पन्न हो गया है, जहाँ पर सुख नहीं है वहाँ पर सुख की मान्यता उत्पन्न हो गई है। हम जब ज्ञान देते हैं, उसके बाद फिर उसे सच्ची दिशा में रास्ता मिल जाता है । रास्ता मिल जाता है इसलिए हल आ जाता है । मिथ्यादर्शन बदल दें और सम्यकदर्शन कर दें, तब उसका निबेड़ा आ जाता है, तब तक निबेड़ा नहीं आता । आत्मा शुद्ध ही है। अभी भी आपका आत्मा शुद्ध ही है, सिर्फ आपकी बिलीफ़ रोंग है । इसलिए आप इन टेम्परेरी वस्तुओं में सुख मान बैठे हो। जो आँखों से दिखता है, कान से सुनाई देता है, जीभ से चखा जाता है, वह सब, 'ऑल आर टेम्परेरी एडजस्टमेन्टस' है और उस टेम्परेरी में आपने सुख माना। अभी आपको इस 'रोंग बिलीफ़' का असर हो गया है। यह ‘रोंग बिलीफ़’ फ्रेक्चर हो जाए तो फिर टेम्परेरी में सुख नहीं आएगा, ‘परमानेन्ट' में सुख आएगा। 'परमानेन्ट' सुख, वह सनातन सुख है, वह आने के बाद फिर जाता नहीं है । और उसे ही 'आत्मा प्राप्त किया', I जाता है, उसे स्वानुभव पद कहते हैं। उस स्वानुभव पद सहित आगे बढ़तेबढ़ते फिर पूर्णाहुति हो जाती है। कहा वस्तुओं का आवन - जावन कैसा? प्रश्नकर्ता : सभी जीव कि जो आत्मा हैं, वे आत्मा इस जगत् में कहाँ से आए होंगे? दादाश्री : कोई भी आया नहीं है। यह पूरा ही जगत् छह तत्वों का प्रदर्शन हैं। ये जो छह तत्व हैं, उन सबके मिलने से ही यह जगत् बना है, वही दिखता है। सिर्फ 'साइन्टिफिक सरकमस्टेनिश्यल एविडेन्स' है!
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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