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________________ आप्तवाणी-८ दादाश्री : आत्मा कटता नहीं है, छेदा नहीं जा सकता, उसे कुछ भी नहीं हो सकता! प्रश्नकर्ता : यहाँ से हाथ कट जाए तो फिर? दादाश्री : आत्मा उतना संकुचित हो जाता है। आत्मा का स्वभाव संकोच और विकासवाला है, वह भी इस संसार अवस्था में। सिद्ध अवस्था में ऐसा नहीं है। संसार अवस्था में संकोच और विकास दोनों हो सकते हैं। यह चींटी होती है न तो उसमें भी आत्मा पूरा ही है। और हाथी में भी एक ही पूरा आत्मा है, परन्तु उसका विकास हो गया है। हाथ-पैर काटने पर आत्मा संकुचित हो जाता है और वह भी कुछ भाग कट जाए न, तब तक संकुचित होता है, उसके बाद संकुचित नहीं होता। प्रश्नकर्ता : जैसे मनुष्य के पूरे शरीर में आत्मा है, उसी प्रकार चींटी और हाथी के भी पूरे शरीर में आत्मा है? दादाश्री : हाँ, पूरे शरीर में आत्मा है। क्योंकि आत्मा संकोच-विकास का भाजन है। जितने अनुपात में भाजन हो, उतने अनुपात में उसका विकास हो जाता है। यदि भाजन छोटा हो तो उतने अनुपात में संकुचित हो जाता है। प्रश्नकर्ता : देह छूटते समय एक छोर यहाँ पर होता है और दूसरा छोर पंजाब में होता है, ऐसा कहते हैं, ऐसा किस तरह से है, ज़रा समझाइए। दादाश्री : आत्मा संकोच-विकास का भाजन है, इसलिए कितना भी लंबा हो सकता है। तो, जहाँ पर उसका ऋणानुबंध होता है, वहाँ पर जाना पड़ता है न? तब थोड़े ही यहाँ से पैरों से चलकर जाएगा? उसके पैर और स्थूल शरीर है ही नहीं न! प्रश्नकर्ता : तो दोनों जगह पर रह सकता है? दादाश्री : हाँ। यहाँ से जहाँ पर जाना हो, वहाँ तक उतना खिंच जाता है। फिर वहाँ पर घुसने की शुरूआत हुई हो तो यहाँ से बाहर निकलता जाता है। जैसे साँप यहाँ बिल में से निकल रहा हो तो एक
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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