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________________ आप्तवाणी-८ दादाश्री : रात को अँधेरे में किस तरह पता चलता है? अँधेरे में पता चल जाता है? और फिर अंदर किशमिश, चिरौंजी आए तो पता चलता है? इलायची का छोटा दाना हो तो भी पता चलता है ? प्रश्नकर्ता दादाश्री : तो इन सबको जो जानता है न, वही जीव है। प्रश्नकर्ता : ये लोग कहते हैं कि ज्ञानतंतुओं के कारण पता चलता है, ज्ञानतंतु नहीं होंगे तो पता ही नहीं चलेगा। हाँ। : दादाश्री : हाँ, ज्ञानतंतु नहीं होंगे तो फिर पता नहीं चलेगा। परन्तु जिसे पता चलता है, वह जीव है । और ज्ञानतंतुओं के बीच में तार की डोरियाँ हैं, यदि वे तार की डोरियाँ तैयार नहीं होंगी तो जीव को पता ही नहीं चलेगा। परन्तु जिसे पता चलता है वह जीव है । आपको समझ में आया न? हिलना-डुलना, वह तो 'मशीनरी' हिलती-डुलती है। ये गुणधर्म चेतन में नहीं है। चेतन के गुणधर्म कौन-कौन से हैं? उसका अनंत ज्ञानप्रकाश है, अनंत दर्शनप्रकाश है, अनंत शक्तियाँ हैं, अनंत सुख का धाम है ! सुख की पसंदगी, लेकिन जीव को ही अब, सुख कौन ढूँढता है? जिसे दु:ख पसंद नहीं है, वह कौन है ? दुःख किसलिए पसंद नहीं है? यदि यह शरीर जीव रहित होता न, तो दुःख और सुख एक समान लगता । इसका क्या कारण है? ऐसा कुछ सोचा है? क्या सोचा है? किसी भी जीव को दुःख पसंद नहीं है, यह बात पक्की है न? किसी भी जीव को दुःख अच्छा लगता है क्या ? इन चींटियों के लिए आप यहाँ पर चीनी डालो तो खुश होकर भागदौड़ करके ले जाती हैं और वहाँ पर ऐसे कंकड़ डालो तो? भाग जाती हैं। इसका क्या कारण है? पसंद क्या है? सुख। अतः जिसे दु:ख पसंद नहीं है और जो सुख ढूँढता है, वह जीव है। जो चलता-फिरता है, वह जीव नहीं है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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