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________________ आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : अवस्तु। दादाश्री : यह जो दिखता है, वह वस्तु है या अवस्तु? प्रश्नकर्ता : आत्मा को तो देखा नहीं जा सकता न, इसलिए अवस्तु है, वस्तु को तो देखा जा सकता है न? दादाश्री : नहीं। वस्तु और अवस्तु, वह आपको समझाता हूँ। हर एक वस्तु जो अविनाशी होती है, उसे वस्तु कहते हैं और विनाशी होती है, उसे अवस्तु कहते हैं। आत्मा आत्मारूप ही है। आत्मा वस्तु के रूप में अनंत गुणों का धाम है! और हर एक वस्तु खुद द्रव्य के रूप में गुण सहित और अवस्था सहित होती है। द्रव्य-गुण-पर्याय जिसमें होते हैं, उसे 'वस्तु' कहते हैं। वस्तु, वह अविनाशी कहलाती है। आत्मा भी खुद वस्तु है, उसका खुद का द्रव्य है, खुद के गुण हैं और खुद के पर्याय हैं। और वे पर्याय उत्पात, व्यय और ध्रुव सहित हैं। और इन आँखों से जो दिखता है, वह सब अवस्तु है, विनाशी है, और आत्मा अविनाशी है, वस्तु है। ऐसी छह अविनाशी वस्तुएँ हैं, जगत् इन छह तत्वों से बना हुआ है। ये छह तत्व एक दूसरे के साथ ऐसे परिवर्तनशील होते रहते हैं और उसके कारण अवस्थाएँ उत्पन्न होती हैं। उन अवस्थाओं से यह जगत् दिखता है। जगत् में सिर्फ अवस्थाएँ ही दिखती हैं। आत्मा जानो, ज्ञानी के पास से यानी जानने जैसी चीज़ इस दुनिया में यदि कोई है तो वह आत्मा है। और आत्मा को जाननेवाले लोग इस दुनिया में मुश्किल से एक या दो ही होते हैं। यानी कि हर कोई आत्मा को नहीं जान सकता। मनुष्य बाकी सभीकुछ जान सकता है, परन्तु आत्मा को नहीं जान सकता। और जो आत्मा को जान ले न, उसे केवळज्ञान होने में देर ही नहीं लगेगी। अब यदि वे आत्मा को 'ज्ञानीपुरुष' से जानेंगे तब आत्मा प्राप्त होगा, वर्ना आत्मा कभी भी प्राप्त नहीं होगा। 'ज्ञानीपुरुष' ने आत्मा देखा है, जाना है, अनुभव किया हुआ है और 'खुद' 'आत्मा' स्वरूप ही रहते
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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