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________________ आप्तवाणी-८ 'रूपक' की निर्जरा, लेकिन 'बिलीफ़' से 'बंध' प्रश्नकर्ता : यानी कि एक प्रतिष्ठित आत्मा और दूसरा शुद्धात्मा? दादाश्री : निश्चय आत्मा, वह शुद्धात्मा है और जो व्यवहार में चलता है, वह व्यवहार आत्मा है, वह प्रतिष्ठित आत्मा है। क्योंकि 'हम' लोग ही उसकी प्रतिष्ठा करते हैं। अभी यदि कोई ऐसा मनुष्य हो जिसने 'ज्ञान' प्राप्त नहीं किया हो और उसका नाम चंदूलाल हो, तो 'मैं चंदूलाल हूँ, मैं इसका मामा हूँ, मैं इसका चाचा हूँ' वह जो कुछ बोल रहे हैं, वह पहले का कर्म है, उसी कर्म को रूपक में बोलते हैं। पहले जो योजना के रूप में था न, वह अब रूपक में आया। अब रूपक में आया उसमें हर्ज नहीं है, लेकिन फिर से वैसे का वैसा ही उसकी श्रद्धा में है, इसलिए वापस उसका बीज डलता है। तो इस प्रकार से वह प्रतिष्ठा करता है, देह में ही प्रतिष्ठा करता है कि, 'यह मैं हूँ।' इसलिए फिर वापस देह उत्पन्न होता है, मूर्ति उत्पन्न होती है। इस प्रकार से प्रतिष्ठा कर-करके नई मूर्ति उत्पन्न करता है और पुरानी मूर्ति खत्म होती जाती है। और वह प्रतिष्ठा की है, इसलिए वह फल देती ही रहती है। प्रतिष्ठित आत्मा की मान्यता ही है, वह 'रोंग बिलीफ़' उत्पन्न हो गई है इसलिए प्रतिष्ठा ही करता ही रहता है। यह मैं हूँ, यह मैं हूँ।' उससे पिछली प्रतिष्ठा खत्म होती है और नई प्रतिष्ठा उत्पन्न होती है। एक तो कहता है कि 'मैं चंदूलाल हूँ', फिर 'इसका मामा हूँ, यह विचार मुझे आया।' अब पिछली प्रतिष्ठा का आश्रव है। उस आश्रव की फिर निर्जरा होती है। निर्जरा होते समय फिर से वैसी ही डिज़ाइन गढ़ने के बाद में निर्जरा होती है। अब जिसे यह ज्ञान दिया हुआ हो, वह क्या कहता है कि, 'मैं चंदभाई हूँ और इसका मामा हूँ' ऐसा बोलता है, वह पिछली प्रतिष्ठा का ही है। लेकिन आज ज्ञान है, इसीलिए 'वास्तव में मैं चंदूभाई हूँ' ऐसी श्रद्धा खत्म हो चुकी है, इसलिए नई प्रतिष्ठा नहीं करता। इसलिए वह संवर कहलाता है, बंध पड़ता नहीं और उसे निर्जरा होती रहती है। बंध किसे कहते हैं? जहाँ पर ज्ञान नहीं होता, वहाँ पर बंध पड़ता है। यानी जैसी हम प्रतिष्ठा करते हैं, वैसी ही वापस फिर से प्रतिष्ठा उत्पन्न हो जाती है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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