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________________ आप्तवाणी-८ ३११ प्रश्नकर्ता : इस बात को तो हम मान लेते हैं, लेकिन मूल शुद्धात्मा जो है, उसकी शक्ति यदि अधिक हो तो फिर अमल कैसे चढ़ेगा? दादाश्री : लेकिन उसकी शक्ति अभी है ही नहीं न! अभी मूल आत्मा तो संपूर्ण उदासीन है। प्रश्नकर्ता : पहले से ही उदासीन है? दादाश्री : वह हमेशा के लिए उदासीन ही है, वीतराग ही है। वह तो क्या कहता है कि जब तक 'आपको' यह सब अच्छा लगता है, तब तक यह करो और जब अच्छा नहीं लगे तब मेरा नाम याद करो और 'ज्ञानीपुरुष' का या कोई भी अवलंबन लेकर मेरे पास वापस आ जाना। जब तक बाहर अच्छा लगता है तब तक भटको, अनुकूल हो तब तक घूमो, वर्ना वापस 'खुद के पास आ जाओ', कहते हैं। इतना ही यदि समझ जाए कि 'सेठ शराब पीते हैं और उनमें बदलाव हो जाता है' तो सभी प्रश्नों का सोल्युशन आ जाएगा। इसमें भी सिर्फ इतनी ही शराब पिलाई है कि 'तू चंदू है, चंदू है ।' और बस इतनी ही शराब पी, उससे ‘आपमें’ ‘अहंकार' खड़ा हो जाता है कि 'मैं चंदू हूँ', ऐसा अहंकार फिर उत्पन्न होता ही रहता है। यानी यह तो सारा अमल हो गया है और बात भी सारी अमलवाली ही करता है। नशे में ही सारी बातें चलती हैं और उस बात का एन्ड ही नहीं आता। बाकी, आत्मा तो संपूर्ण संसारकाल में उदासीन ही है। अब यह बात लोगों को किस तरह समझ में आए? एक आधा सेर शराब पी और उस सेठ में परिवर्तन हो जाता है, तो यह तो रोज़ की शराब है ! सुबह उठा तब से लोग शराब पिलाते रहते हैं । लोग नहीं कहते कि, 'आओ चंदूभाई, आओ चंदूभाई। आप तो हमारे समधी हैं, आप इनके पति है, आप इनके मामा है, इनके चाचा है' और फिर 'आप' भी ऐसा मान लेते हो। यानी कि यही शराब पी है और इससे निरा नशा ही चढ़ता रहता है । यह शराब पीकर ही आप बोल रहे हो और फिर कहते हो, 'मैंने शराब कहाँ पी?' पूरी दुनिया यही शराब पीकर घूम रही है । यह तो, जब वह शराब
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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