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________________ सब अज्ञानता की है। ज्ञानी आत्मा का ज्ञान देते हैं, इतना ही नहीं परन्तु सृष्टि की सर्व उलझनों का सर्वांगी समाधान भी देते हैं। ज्ञानी से स्वरूप का ज्ञान प्राप्त करने में अंतराय आए तो 'ज्ञानी से ज्ञान प्राप्त करना ही है' ऐसे निश्चय से टूट जाते हैं या फिर ज्ञानी से विनती करे कि 'मेरे अंतराय तोड़ दीजिए' तो वे तोड़ देते हैं। वर्ना आत्मा प्राप्त करने की इच्छावाले को कोई प्रतिकूलता आती ही नहीं। प्रतिकूलता खुद की ही कमज़ोरी के कारण हैं। निजघर में जाने में प्रतिकूलता कैसी? खुद आत्मा का अनुभव करना हो तो जब कोई जेब काटे, गालियाँ दे, मारे, तो उस घड़ी 'यह मेरे ही कर्म का उदय है, सामनेवाला तो निमित्त है, वह तो मुझे कर्म में से मुक्त करवा रहा है' ऐसा करके वह निर्दोष दिखे और ऊपर से उसे आशीर्वाद दें, और ऐसा हमेशा रहे तो आत्मा प्राप्त होगा ही। इस काल में इतना सब अपने आप हो सके, खुद की ऐसी शक्ति नहीं होती, इसलिए 'ज्ञानी' से एक बार आत्मा जागृत करवा लेने पर, फिर आत्मा स्वप्न में भी नहीं भूला जाता। आत्मा का उद्धार किस तरह से होगा? मूल आत्मा का उद्धार तो हो ही चुका है। मात्र इस माने हुए आत्मा का उद्धार करना है। वह किस तरह से होगा? 'खुद' को जब ऐसा समझ में आ जाएगा कि, 'मेरा स्वरूप तो केवळज्ञान स्वरूप है, केवळदर्शन स्वरूप है, मैं केवळ चारित्रमय हँ' तब उसका भी उद्धार हो जाएगा। और यह वस्तु 'ज्ञानीपुरुष' के अलावा और कौन फ़िट करवा सकता है? __ आत्मा सूक्ष्मतम है, आत्मा के बाहर के जो प्रदेश हैं वे सूक्ष्मतर है, परन्तु वाणी सूक्ष्मतर नहीं होती, इसलिए वहाँ का वर्णन करते हुए 'वाणी' रुक जाती है। वहाँ तो अनुभव ही निबेड़ा ला सकता है। जो माना हुआ आत्मा है, उससे खुद यथार्थ आत्मा को देखने जाएगा तो कहाँ से मिलेगा? इन्द्रियदृष्टि अतीन्द्रिय को किस तरह से देख सकेगी? इसके लिए बीच में 'ज्ञानीपुरुष' की आवश्यकता है कि जो दृष्टि बदल ३३
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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