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________________ ३०० आप्तवाणी-८ दादाश्री : वह 'टेपरिकार्ड' है। जो व्यवहारिक ज्ञान आपने जाना, वह व्यवहारिक ज्ञान आत्मा नहीं है। निश्चय ज्ञान, वह आत्मा है। आपने जो व्यवहारिक ज्ञान जाना, वह तो 'टेपरिकार्ड' हुआ था, उसकी आपको आवाज़ सुनाई देती है। इसलिए आपको खटकता रहता है कि, 'व्यवहार में ऐसा होना चाहिए और यह तो हम उल्टा कर रहे हैं।' अत: वह आत्मा नहीं है। बाकी, आत्मा तो बोल नहीं सकता, खा नहीं सकता, पी नहीं सकता, आत्मा श्वास नहीं ले सकता। यह सब आत्मा का काम नहीं है, आत्मा का ऐसा धंधा ही नहीं है। आत्मा के गुणधर्म अलग हैं। जैसे कि इस अंगूठी के अंदर सोना और तांबा, दोनों मिले हुए होते हैं, और उन्हें अगर अलग करना हो तो किसे देना पड़ेगा? प्रश्नकर्ता : सुनार को। दादाश्री : हाँ। क्योंकि सुनार उसका जानकार है। उसी तरह इस देह के अंदर आत्मा और अनात्मा, ये दो विभाग हैं। जो आत्मा के और अनात्मा के गुणधर्म को जानते हैं, वे उन्हें अलग कर देते हैं, पूरी 'लेबोरेटरी' रखकर अलग कर देते हैं। यह तो सारा ‘मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' है। यह जो बोलते हैं, यह सारा ‘रिकार्ड' है। सुननेवाले को क्या कहते हैं? 'रिसीवर' कहते हैं न! अर्थात् ये सब 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्टस' ही हैं। ये आँखें भी 'मिकेनिकल एडजस्टमेन्ट' हैं। दिमाग पूरा ही 'मिकेनिकल' है, सिर पर ठंडा पानी डालें, तब सीधा रहता है। नहीं तो जब दिमाग़ गरम हो जाता है और बहुत तप जाता है, तब पानी की पट्टी रखनी पड़ती है न, या नहीं रखनी पड़ती? यह तो अंदर कितना बड़ा आत्मा भगवान की तरह बैठा हुआ है, फिर भी देखो पानी की पट्टी रखने का समय आया, लेकिन पट्टी रखनी पड़ती है, तभी अंदर ठंडा हो पाता है, नहीं तो, अंदर भी उबलता रहता है। जब तक अज्ञान है, तब तक आत्मा वेदक है और जो वेदना होती
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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