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________________ २९८ आप्तवाणी-८ बाद ही दिखता है, वर्ना अंदर तो ऐसे आँख मींचकर स्त्रियाँ वगैरह दिखती हैं। प्रश्नकर्ता : यानी अंतर्मुख होने के लिए किसी सहारे की ज़रूरत पड़ती है? दादाश्री : वह तो कृपा हो, तब अंतर्मुख हुआ जाता है। कृपा के बिना अंतर्मुख किस तरह से हो सकेगा? वर्ना लोगों को अंदर कारखाने दिखते हैं, और कितनी ही कल्पनाएँ दिखती हैं। प्रश्नकर्ता : वह कृपा कब होती है? दादाश्री : कृपा तो 'ज्ञानीपुरुष' के दर्शन करे, उनका विनय करे, उनकी आज्ञा में रहे, तब कृपा मिलती है। बाकी वह कृपा क्या यों ही मिलती होगी? या फिर क्या विरोधी बनने से कृपा मिलेगी? ऐसे कोई विरोध करे तो भी 'ज्ञानीपुरुष' को कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन विरोध करनेवाले को कितना अधिक नुकसान होगा! हमें तो गाली दे तो भी आपत्ति नहीं है। लेकिन इससे आपकी क्या दशा होगी? इसलिए हम आपको समझाते हैं कि सीधे रहो। साँप बिल में घुसते समय सीधा चलता है? टेढ़ा नहीं चलता? उस घड़ी वह सीधा हो जाता है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : वैसे ही यहाँ पर 'ज्ञानीपुरुष' के सामने सीधा हो जाना है। यहाँ पर टेढ़ापन नहीं चलेगा। यहाँ पर तो आज्ञा में रहना चाहिए। क्योंकि ऐसे 'ज्ञानीपुरुष' के तो दर्शन ही करने को नहीं मिलते। इन्द्रियों का अंतरमुख या आत्मारूप होना? प्रश्नकर्ता : लेकिन यह जो पाँच इन्द्रियों के बारे में बताया है, कि यह सब बाह्य व्यापार है, तो क्या इन इन्द्रियों को अंतर्मुख करना चाहिए? दादाश्री : नहीं, इन्हें अंतर्मुख तो पहले बहुत दिनों तक किया है। क्योंकि अंतर्मुख करता है न, इतने में तो वे बाहर चली जाती हैं
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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