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________________ आप्तवाणी-८ से लेने जाते हैं, कितने अदब से, कितने विनय से, कितने विवेक से इनाम लेने जाते हैं। तो इसके लिए कुछ पूर्व तैयारी हो सकती है क्या? भावना और ऐसी सब जागृति हो जानी चाहिए । 'तुझे एक इनाम मिला है', ऐसा कहे, तो बच्चे कितनी मस्ती में आ जाते हैं ! जब कि यह तो अमूल्य चीज़ देने की बात है I २९२ अक्रम मार्ग की अद्वितीय सिद्धियाँ जब इस जगत् में किसी भी द्वंद्व का असर नहीं हो, किसी भी वस्तु का असर नहीं हो, ‘मैं परमात्मा हूँ' ऐसा भान हो जाए तो हो गया कल्याण! या फिर ‘मैं शुद्धात्मा हूँ' ऐसा श्रद्धा में आ जाए, उसे प्रतीति में बैठ जाए, तो भी फिर आगे बढ़ जाएगा । अर्थात् पहले समझ में आना चाहिए। और जब समझ में आए, तब तक वर्तन बदले या न भी बदले। लेकिन ज्ञान में आया, ऐसा कब कहा जाएगा कि वर्तन भी बदल जाए, तभी ज्ञान में आया कहलाएगा। ज्ञान तो उसीको कहते हैं कि जो वर्तन में हो। हम यह जो ज्ञान देते हैं न, वह केवळदर्शन का ज्ञान देते हैं, क्षायक समकित का ज्ञान देते हैं । फिर यदि हमारी आज्ञा में रहे तब तो दोनों फल मिलेंगे। और उसका क्षायक ज्ञान कब हो पाएगा? जब वह समझ फिर वर्तन में आएगी, तब क्षायक ज्ञान होगा । मैं आपको देता हूँ केवळज्ञान, लेकिन इस काल के कारण पचता नहीं। फिर भी मुझे पूरा-पूरा केवळज्ञान देना है। क्योंकि पूरा-पूरा नहीं दूँगा, तब तो आपको प्रकट नहीं होगा लेकिन इस काल के कारण इसका पाचन नहीं हो पाता। वह हजम नहीं हो पाता, फिर भी उसमें हमें हर्ज नहीं है । क्योंकि मोक्ष अपने पास आ गया, फिर बाकी क्या रहा? ऐसा मोक्ष पाने के बाद बेटे-बेटियों की शादी करवाएँ, उसमें भी क्या हर्ज है? वर्ना किसी जीव को थोड़ा भी दुःख देकर मोक्ष में जाना चाहें, तो मोक्ष में घुसने देंगे? क्योंकि पत्नी कहेगी, 'अभी आप मत जाना । इस छोटी बेटी की शादी करने के बाद जाना ।' और अगर आप भाग गए तो क्या उससे मोक्ष हो जाएगा आपका? भगवान ने क्या कहा है
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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