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________________ २९० आप्तवाणी-८ जिज्ञासु वृत्ति तो प्राप्त करवाए वस्तु प्रश्नकर्ता : हम ज्ञान लें, तो हमारी भी वह स्टेज ऊँची हो जाएगी? दादाश्री : फिर मुझमें और आपमें फ़र्क ही नहीं रहेगा। फ़र्क इतना ही रहेगा कि मैंने मेरी दुकान का माल बेच दिया है सारा और दुकान खाली कर दी। और आपकी दुकान खाली करनी बाकी रहेगी, इतना ही फ़र्क रहेगा। आपको तो अभी सारा सामान बेच देना है। गुड़-शक्कर जो भी पड़ा हो, उसका निकाल कर देना है। और मैं सब निकाल करके बैठा हूँ। इतना ही फ़र्क है। यानी कि यह तो मैं आपको मेरे साथ ही बैठा देता हूँ, जहाँ पर मैं खुद हूँ, वहाँ पर। अब ऐसा ऊँचा पद मिले, तभी तो चिंता बंद होती है न! बाकी चिंता बंद होना, वह क्या आसान है? ___ इस वर्ल्ड में कोई भी मनुष्य चिंतारहित नहीं हुआ है, और मैं चिंतारहित कर देता हूँ आपको! लेकिन वह तो जब मैं मेरी दशा में बैठा दूँ, तभी चिंतारहित बनोगे न! यों ही तो नहीं हो जाएगा न! चिंता बंद हो जाए तो जानना कि अब इस जन्म में मोक्ष में जानेवाले हैं। आपको चिंता ही नहीं हो, संसार में रहने के बावजूद, पत्नी-बच्चों के साथ रहने के बावजूद, यह सारा संसार व्यवहार करने के बावजूद चिंता नहीं हो, तो जानना कि एक जन्म में हम मोक्ष में जानेवाले हैं, ऐसा यक़ीन हो गया। प्रश्नकर्ता : वह स्थिति प्राप्त करना मुश्किल है। दादाश्री : मुश्किल तो है, लेकिन यह अक्रम विज्ञान निकला है न, इसलिए मोक्ष तो खिचड़ी बनाने से भी आसान हो गया है! यह अक्रम विज्ञान प्राप्त होना मुश्किल है, ऐसा पुण्य जगना मुश्किल है। और प्राप्त हो जाए तो आपका कल्याण हो जाए। क्योंकि पुण्य जगने के बाद आपको कुछ भी करना नहीं होता। आपको सिर्फ लिफ्ट में बैठना है, सिर्फ इतना ही कि हाथ-पैर बाहर मत निकालना, इसके लिए मैंने आज्ञा दी है, उसे पालना।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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