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________________ २८० आप्तवाणी-८ दादाश्री : हो जाता है न! प्रश्नकर्ता : तो फिर वह बोलता होगा या बुलवाता होगा? दादाश्री : यह बोलते-बुलवाते का सवाल नहीं है इसमें। कोई बुलवाता भी नहीं है और बुलवाए तो वह बुलवानेवाला गुनहगार बन जाएगा। यानी कि आप जो ढूँढ रहे हो न, वहाँ पर अँधेरा है। आप आगे जो माँग रहे हो, वह सब अँधेरा ही है। उसे बुलवानेवाला कोई है ही नहीं। ये 'साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स' बोल रहे हैं और आप जो कह रहे हो न, वह सब तो घोर अँधेरा है। उस तरफ़ बहुत लोग गए और वे सभी भटक गए। बाड़ाबंदी तो विभाविकता में प्रश्नकर्ता : तो शुद्धात्मा का जो ज्ञान आपके पास से लें, तो वह एक मंडल या बाड़ा नहीं कहलाएगा? दादाश्री : नहीं, इसमें बाड़ा है ही नहीं न! जहाँ पर विभाविकता होती है, वहाँ पर बाड़ा (संप्रदाय) होता है। स्वाभाविकता होती है वहाँ पर सहजता उत्पन्न होती है, वहाँ पर बाड़ा होता ही नहीं न! क्योंकि वह पेड़पौधे, गाय-भैंस सभी जीवों में शुद्धात्मा के दर्शन करता है, फिर उसमें जुदाई या बाड़ा रहा ही कहाँ? सभी जगह 'एवरीव्हेर' भगवान दिखते हैं उसे। रोंग बिलीफ़ मिटने से भगवान में अभेद प्रश्नकर्ता : अगर शुद्धात्मा ही भगवान है, खुद के अंदर ही है, तो फिर वह दूर कहीं पर होगा ही नहीं न? दादाश्री : हाँ। बस, अंदर हैं, वही भगवान हैं, और कोई भगवान इस जगत् में है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : तो फिर उस भगवान से खुद को भेद नहीं रहता है न?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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