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________________ २५२ आप्तवाणी-८ यह ख़बर होनी चाहिए या नहीं होनी चाहिए? कहाँ पर बैठे है, यह ख़बर नहीं होती न? तो फिर मुझे साफ़-साफ़ कह देना चाहिए न! जब तक मैं साफ़-साफ़ नहीं कहूँगा, तब तक वह अपना माल-सामान फेंकेगा नहीं। अतः इसका हल लाना चाहिए। मनुष्य खुद अपनी तरह से जान नहीं सकता कि मैं कौन-से स्टेशन पर हूँ। वह तो जब 'ज्ञानीपुरुष' बताएँ कि, 'भाई, अभी तो बहुत स्टेशन बाकी हैं। यों ही मत बैठा रह। चल, बैठ जा, किसी गाड़ी में।' प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, यहाँ तो ऐसा होता है कि कईं कहते हैं कि इस गाडी में बैठ जा तो उसमें बैठ जाता है और फिर उतर जाता है। यही मुश्किल होती है। दादाश्री : यही धंधा लगा रखा है, बैठता है और उतरता है, बैठता है और उतरता है। ज्ञानी के बिना कोटि उपाय भी व्यर्थ संसार रोग मिटाने के लिए पूरा जगत् क्या करता है कि पेड़ के पत्ते निकाल देता है या डाली काट देता है। और मन में ऐसा मानता है कि अब पेड़ सूख जाएगा। लेकिन वह दो महीने बाद वापस उग निकलता है, तब वापस पछतावा होता रहता है। कुछ लोग पेड़ के पत्ते काटते हैं, कुछ लोग इतनी बड़ी-बड़ी डालियाँ काटते हैं, वे भी फँसते हैं। कुछ नहीं चलता। फिर से फूट निकलते हैं। कुछ लोग बड़े-बड़े तने काटते हैं, वे भी फँसे हैं और कुछ लोग मुख्य तना काट देते हैं, फिर भी पेड़ वापस उग जाता है। यानी कि इस संसार रोग का उपाय तो बहुत लोग करकरके थक गए हैं। इसलिए भगवान ने कहा है न, 'पूरी दुनिया में कभीकभी ही एकाध ऐसे ज्ञानी प्रकट होते हैं, वे रोज़ नहीं, सौ-सौ वर्षों में भी नहीं, कभी-कभी एकाध अवतरित होते हैं, तब अपना काम हो जाता है', वर्ना यहाँ पर तो सभी दुकानदार ऐसा ही कहते हैं न कि हमारी दुकान अच्छी है। हमारी दुकान में, सबसे अच्छा, उत्तम माल हमारी दुकान में ही है। और लोग बेचारे भोले हैं न, भोले और लालची, इसलिए फिर फँसते
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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