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________________ आप्तवाणी-८ दादाश्री : ग्रहण करना ही मुश्किल है। बाकी, त्याग तो सभी तरह का हो सकता है। २५० प्रश्नकर्ता : त्याग भी नहीं हो सकता । त्याग किस तरह से हो सकेगा? ऊपर का त्याग अलग है, अंतर का त्याग अलग है। त्याग तो अंतर से होना चाहिए न ? दादाश्री : अंतर से त्याग होना चाहिए, तब वह हो सकेगा। वैसा करनेवाले तो बहुत लोग हैं । ग्रहण क्या किया, वह देखना है। त्याग हो जाए न, तो उस जगह में वेक्युम रहता है, तो वहाँ पर रखें क्या? प्रश्नकर्ता : वहाँ पर एक ही 'सर्व खल्विदम् ब्रह्म ।' और क्या हो सकता है? दादाश्री : लेकिन ब्रह्म यानी क्या? प्रश्नकर्ता : ब्रह्म अर्थात् आत्मा। दादाश्री : ब्रह्म किस तरह से हो पाएगा? ब्रह्म प्रकट नहीं होगा न ! क्योंकि ब्रह्म तो कब प्रकट होगा? क्रोध-मान-माया-लोभ और ममता जाएँगे तब ब्रह्म प्रकट होगा, वर्ना तब तक प्रकट ही नहीं होगा न ! तब तक देहाध्यास छूटेगा ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता : अब मुझमें क्या खामी है, वह आप देख सकते हैं, मैं कैसे कह सकता हूँ? दादाश्री : नहीं, हम खामी क्यों देखें? खामी तो आपको खुद की ही दिखनी चाहिए कि अभी तक मुझमें कुछ लोभ है या मुझमें क्रोध है, ऐसा आपको खुद को ही दिखना चाहिए। आपमें क्रोध - मान-माया - लोभ कुछ है ही नहीं न? अभी कोई छेड़े तो ? ऐसा है, कोई व्यक्ति ‘उधना' स्टेशन पर बैठा रहे और कहे कि मुझे इस वेस्टर्न रेल्वे के आखिरी स्टेशन तक जाना था, वहाँ मैं पहुँच चुका हूँ । तो मैं कहूँगा कि, ‘भाई, यहाँ पर मत बैठे रहना। अभी तो बहुत आगे जाना
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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