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________________ आप्तवाणी-८ २४७ प्रश्नकर्ता : होगा, वह तो अपनी आजीविका है। दादाश्री : अब वहाँ पर शून्य कहाँ चला गया? फिर भी इस तरह से शांति रखते हो, वह अच्छा है, गलत नहीं है। लेकिन वह सारा शून्य का रास्ता नहीं है। शून्य तो, आत्मा को प्राप्त करना चाहिए, आत्मा को जानना चाहिए। आत्मा जानने के बाद शून्य स्थिति आती है। आत्मा तो, निरीक्षक के भी उस पार प्रश्नकर्ता : तो फिर आत्मसाक्षात्कार के लिए कौन-सा साधन सर्वश्रेष्ठ है? दादाश्री : उसके लिए अन्य कोई साधन है आपके पास? आप साध्य बनना चाहते हो, लेकिन आपको दूसरा और कौन-सा साधन लगता है? प्रश्नकर्ता : आधा घंटा आत्मनिरीक्षण करना। दादाश्री : आत्मा को पहचानकर निरीक्षण करते हो या पहचाने बिना करते हो? प्रश्नकर्ता : आत्मा को पहचाने तो फिर बाकी क्या रहा? दादाश्री : तो फिर आत्मनिरीक्षण किसका करते हो? प्रश्नकर्ता : जो विचार आते हैं, उनका। दादाश्री : ओहोहो! विचारों का? विचार तो मन में से आते हैं और मन खुद जड़ है, 'कम्प्लीट फिज़िकल' है। यानी कि मन के विचारों का आप 'स्टडी' करते हो। वह जो 'स्टडी' करता है न, वह 'इगोइज़म' करता है। और 'इगोइज़म' के उस पार 'आत्मा' है। अनुभूति की उल्टी आँटी प्रश्नकर्ता : मुझे आत्मा का जो अनुभव होता है, वह बताता हूँ कि जैसे पानी के फव्वारे उड़ते हों, ऐसे अंदर आनंद-आनंद हो जाता है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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