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________________ २२० आप्तवाणी -८ हम विभाजन कर देते हैं, 'लाइन ऑफ डिमार्केशन' डाल देते हैं कि 'दिस इज़ देट एन्ड दिस इज नॉट देट । ' प्रश्नकर्ता : इस विनाशी से अविनाशी जुदा हो जाता है, फिर उसका क्या होता है? दादाश्री : फिर उसे ये दुःख नहीं रहते न ! ये सांसारिक दुःख जो हैं कि 'ऐसा हो गया, वैसा हो गया', वे उसे नहीं रहते । फिर मृत्यु आ तो भी डर नहीं लगता, जेब कट जाए तो भी दुःख नहीं, पत्नी गालियाँ दे तो भी दुःख नहीं, कोई दुःख ही उत्पन्न नहीं होता न ! यानी कि विनाशी से अविनाशी अलग हो जाए तो दोनों अपने-अपने स्वभाव में रहेंगे, और क्या होगा? प्रश्नकर्ता : इस प्रकार से जिनमें अलग हो चुका है, उसे मृत्यु बाद में क्या होता है ? दादाश्री : मृत्यु के बाद उसका एक जन्म बाकी रहता है । क्योंकि हम ये जो पाँच आज्ञा देते हैं, उन्हें पाले तो उसका एक जन्म बाकी रहता है। ऐसा स्वरूप जगत् का रहा प्रश्नकर्ता : इस सृष्टि के क्रम की कुछ बातें समझ में नहीं आतीं कि जो लोग आपके पास आए और उन्हें आपके पास से आत्मज्ञान प्राप्त हुआ, लेकिन दूसरे लोगों को क्यों नहीं होता होगा ? दादाश्री : यह सभी लोगों के लिए नहीं है । ऐसा है, यह जो पूरी सृष्टि है न, वह प्रवाह के रूप में है। यानी कि जितना समुद्र से मिल जाता है, वहाँ पर उतने पानी की मुक्ति हो गई और दूसरा सारा जैसे-जैसे आएगा वैसे-वैसे उसकी मुक्ति होती जाएगी। यानी कि यह पूरा ही जगत् प्रवाह के रूप में है और इसीलिए सभी को एकदम से यह ज्ञान नहीं हो सकता ।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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