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________________ २१६ आप्तवाणी-८ दादाश्री : विनाशी नहीं है? लेकिन आपके जैसा ज्ञान इन सबको नहीं है। इन सबको अलग तरह का ज्ञान है। ये लोग तो ऐसा कहते हैं कि शरीर विनाशी है और आप तो 'शरीर विनाशी नहीं है', ऐसा कहते हो। आपके घर पर कप-प्लेट टूट जाएँ तो आपको कुछ होता नहीं है? प्रश्नकर्ता : विनाशी के अर्थ के लिए मैं वैज्ञानिक दृष्टि से बात पूछ रहा हूँ। दादाश्री : नहीं। यहाँ पर वैज्ञानिक दृष्टि की ज़रूरत ही नहीं है। हमें व्यवहार की दृष्टि की ज़रूरत है। यहाँ व्यवहार में व्यवहार की दृष्टि चाहिए। वैज्ञानिक दृष्टि से तो क्या है, वह भी आपको बता दूँ! वैज्ञानिक दृष्टि तो क्या कहती है कि, 'इस दुनिया में एक भी परमाणु कम नहीं होता। भले ही कितना भी नाश होता रहे, तब भी एक भी परमाणु कम नहीं होता, इसी तरह एक भी परमाणु बढ़ता नहीं है।' लेकिन लोगों के घर में कपप्लेट टूट जाते हैं तो कलह होती है या नहीं होती? कपड़े जल गए तो कलह होती है न? यह घर जल गया, तब भी दुःख होता है या नहीं होता? इसलिए इन्हें विनाशी कहा है। इसमें कहीं आत्मा नहीं जलता है। प्रश्नकर्ता : विनाशी अर्थात् 'वेदर इट इज़ ओन्ली चेन्ज ऑफ स्टेट'? दादाश्री : विनाशी अर्थात् अवस्थाओं का विनाश होता है। वस्तु विनाशी नहीं है, तत्व विनाशी नहीं है। लेकिन ये अवस्थाएँ जो उत्पन्न होती हैं, उन अवस्थाओं का नाश होता है। जगत् के लोग भी अवस्थाओं में ही उलझे हुए हैं, इसलिए इन्हें विनाशी ही कहना पड़ेगा। ये लोग यदि डॉक्टर के पास जाएँ, और कहें कि डॉक्टर साहब, 'मुझे बुख़ार आया है', अब वहाँ पर डॉक्टर कहेगा, 'अविनाशी है' तो, हो चुका! उस बेचारे को तो घबराहट हो जाती है। इसलिए हम कहते हैं, 'बुख़ार विनाशी है, चला जाएगा!' आपको समझ में आया मैं क्या कहना चाहता हूँ, वह?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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