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________________ आप्तवाणी-८ २०७ सुंदर होता है। लेकिन शाम को ज़रा थक गए हों, और बोतल पीएँ, फिर कैसे हो जाते हैं? तब फिर ब्रान्डी का नशा चढ़ता रहता है, इसलिए खुद की अवस्था भूलते जाते हैं। खुद की जागृति डिम होती जाती है, फिर अंधापन खड़ा हो जाता है। प्रश्नकर्ता : शराब के नशे में सब भान भूल जाता है, उसी तरह अध्यात्म में लोग किस तरह भान भूल जाते हैं? दादाश्री : अध्यात्म में, यह मोह का नशा चढ़ा हुआ है, वह उतरता नहीं है। उस नशे में लोग बोल रहे हैं। आप जो ये सभी बात-चीत कर रहे हो न, वह मोह की शराब पीकर बोल रहे हो। इन सभी 'महात्माओं' का नशा उतार दिया है, लेकिन आपका तो नहीं उतारा है और नशे में ही बोल रहे हो। यानी कि जब वह नशा उतर जाएगा, तब 'इस जीवन का हेतु क्या है' वह सब समझ में आ जाएगा, तुरन्त पता चल जाएगा। जैसे सेठ का नशा उतर जाने के बाद सेठ जैसे थे वैसे ही हो जाते हैं न! वापस कैसी सुंदर बाते करते हैं फिर से। यानी कि इसमें ब्रान्डी का नशा चढ़ा हुआ है, और जगत् को मोह का नशा चढ़ा हुआ है, ब्रान्डीवाले पर तो दो-तीन घड़े ठंडा पानी डाल दें न, तो नशा उतर जाता है। और इसमें तो, मोह का नशा तो उतरता ही नहीं है न और फिर हिमालय में जाओ या कहीं भी जाओ, लेकिन जहाँ देखो वहाँ पर (मोहरूपी) शराब पीए हए लोग ही होते हैं। घर-पत्नी-बच्चे सबकुछ छोड देता है, लेकिन 'हम' नहीं छूटता। वह 'हम, हम, हम' में ही रहता है। जब 'हम' चला जाए, तब परमात्मा बन जाता है। 'आप' खुद ही 'परमात्मा' हो, लेकिन उसका 'आपको' भान नहीं है, जागृति नहीं है न! प्रश्नकर्ता : हम मूल बात पर आ जाएँ कि, दुनिया में मनुष्यों को किसलिए जीना चाहिए? दादाश्री : मोक्ष के लिए जीना चाहिए। लेकिन फिर भी समझ नहीं हो तो फिर ये सभी लोग स्त्री के लिए जीते हैं, पैसों के लिए जीते हैं, और किसी चीज़ के लिए जीते हैं, लेकिन यह नासमझी से है सारा। हेतु
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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