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________________ आप्तवाणी-८ २०३ दादाश्री : वह आपकी भाषावाला ‘बैठे रहना' नहीं है। वहाँ खड़े भी नहीं रहना है और बैठे भी नहीं रहना है, वहाँ पर लेटना भी नहीं है। वहाँ पर नई ही तरह का है। प्रश्नकर्ता : सिर्फ देखते ही रहना है? दादाश्री : हाँ, लेकिन वह कल्पना की वस्तु नहीं है। आप कल्पना से देखना चाहते हो, ऐसी वस्तु नहीं है वह। प्रश्नकर्ता : सिद्धशिला कैसी होती है? दादाश्री : सिद्धशिला तो, जहाँ पर खुद कर्म को चिपकना हो, फिर भी चिपक नहीं सके, ऐसी जगह है और यहाँ तो अपनी इच्छा नहीं हो फिर भी कर्म चिपक जाते हैं। ये कर्म के परमाणु निरंतर सभी जगह पर होते हैं। यहाँ तो परमाणु तैयार ही रहते हैं और वहाँ उन पर कुछ असर ही नहीं होता। भगवान! हमेशा के लिए वही पद! प्रश्नकर्ता : वहाँ सिद्धक्षेत्र में परमाणु नहीं हैं? दादाश्री : वहाँ पर कुछ भी नहीं है। वे सिद्ध भगवंत यहाँ के सभी ज्ञेयों को खुद देख सकते हैं। लेकिन वहाँ उनकी जगह में ज्ञेय नहीं होते। वह सिद्धक्षेत्र तो, सभी सिद्धों के रहने का स्थल है एक प्रकार का, उसे सिद्धक्षेत्र कहते हैं। प्रश्नकर्ता : सिद्धक्षेत्र ब्रह्मांड में है या ब्रह्मांड के बाहर है? दादाश्री : ब्रह्मांड की सीमा रेखा पर है, अंतिम सीमा पर है। आप अपनी भाषा में समझ जाओ, हर कोई अपनी-अपनी भाषा में ले जाता है फिर। लेकिन सिद्धक्षेत्र ब्रह्मांड के बाहर भी नहीं है, लेकिन अंतिम सीमारेखा पर होता है। ग़ज़ब का सिद्धपद, वही अंतिम लक्ष्य प्रश्नकर्ता : सिद्धक्षेत्र में जो सिद्धात्मा सिद्ध हो चुके हैं, उन्हें फिर
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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