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________________ आप्तवाणी-८ १९१ काट देते। लेकिन यह तो ऐसे बँधा हुआ है कि जो टूट ही नहीं सकतीं। वे जंजीरे भी किस तरह की हैं? कवि ने क्या लिखा है? 'अधातु सांकळीए परमात्मा बंदीवान।' अधातु जंजीरों से यानी कि इस प्रकृति की जंजीरों में बँधा हुआ है। 'स्वतंत्र' किसमें से पढ़कर लाए हो? ऐसी जो पुस्तकें पढ़ते हो, वे 'सर्टिफाइड' की हुई पुस्तकें पढ़ते हो या दूसरी ‘अन्सर्टिफाइड' पुस्तकें पढ़ते हो? प्रश्नकर्ता : लेकिन शास्त्र तो ऐसा ही कहते हैं कि आत्मा स्वतंत्र और मुक्त है। दादाश्री : कोई नहीं कहता। स्वतंत्र होता तो मोक्ष का, मुक्ति का मार्ग ही कहाँ रहा फिर? उन शास्त्रों से कहें, 'आप किसलिए पुस्तकें बने? आपकी क्या ज़रूरत थी यहाँ पर? आत्मा स्वतंत्र नहीं है, इसलिए बंधन में से छुड़वाने के लिए आप सभी ने जन्म लिया है।' यदि स्वतंत्र होता तो फिर शास्त्र की ज़रूरत होती क्या? जो ऐसा कहता है कि, 'आत्मा को बंधन नहीं है', उसके लिए 'मोक्ष भी नहीं है' ऐसा कहा जा सकता है और जो ऐसा कहते हैं कि 'आत्मा को बंधन है', उनके लिए 'मोक्ष भी है' ऐसा कहना पड़ेगा। यह विरोधाभास जैसी वस्तु नहीं है। आपको समझ में आया न? जो ऐसा मानते हैं कि आत्मा को बंधन नहीं है, तो फिर उसे मोक्ष की ज़रूरत भी नहीं है। क्योंकि आत्मा मोक्ष में ही है। लेकिन मोक्ष स्वरूप क्या है, उसे समझना चाहिए। ___ कुछ तो ऐसा कहते हैं कि, 'आत्मा को बंधन ही नहीं है।' यह बात तो सच है। लेकिन यदि आत्मा को बंधन नहीं है, तो फिर मंदिर में क्यों जाते हो? शास्त्र क्यों पढ़ते हो? चिंता किसे होती है? यह सारा फिर विरोधाभास हुआ न? 'आत्मा को बंधन नहीं है' यह बात तो सौ प्रतिशत सच है, लेकिन किस अपेक्षा से बोलना है? यह तो निरपेक्ष बात है। आत्मा को ज्ञानभाव से बंधन नहीं है, अज्ञानभाव से बंधन है। अगर आपको ज्ञानभाव हो गया कि 'मैं शुद्धात्मा हूँ' तो 'आपको' बंधन नहीं है।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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