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________________ कर्ता 'रूट कॉज़' अज्ञान है, जिसे और कोई भी नहीं निकाल सकता सिवाय 'ज्ञानीपुरुष' के! आत्मा को आवृत करनेवाला अज्ञान है, न कि अहंकार ! ज्ञान की आंतरिक जागृत दृष्टि कैसी होती है ? प्रथम विज़न में स्त्री, पुरुष ‘कम्पलीट' ‘नेकेड' दिखते हैं । द्वितीय 'विज़न' में त्वचारहित काया दिखती है और तृतीय ‘विज़न' में चीरा हुआ देह, आंतें, माँस-हड्डियोंवाला दिखता है!!! और अंत में सभी में ब्रह्मस्वरूप दिखता है !!!! फिर क्या - द्वेष होंगे? राग द्रव्य जीवमात्र में चेतन तत्व विद्यमान है, जो स्वभाव से एक है, से नहीं, द्रव्य से तो प्रत्येक चेतन भिन्न-भिन्न और संपूर्ण स्वतंत्र है । सर्व आत्मा यदि एक ही होते, तब तो फिर रामचंद्रजी मोक्ष में चले गए, तो सभी चले जाते न? ‘एकोहम् बहुस्याम' क्या ब्रह्म को ऐसी इच्छा हो सकती है? आत्मा परमात्मा में विलीन होता ही नहीं है । विलीनीकरण में तो प्रत्येक आत्मा को संपूर्ण पोतापणुं ( मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन ), खुद की स्वतंत्रता खोकर, अन्य में होम देनी पड़ेगी? ज्ञानी जीवमात्र में संपूर्ण सर्वांग और स्वतंत्र रूप से रहनेवाले परमात्मा के दर्शन करते हैं! यदि आत्मा एक ही होता तो फिर जब रामचंद्रजी मोक्षसुख का आनंद उठा रहे हैं, तब हमें क्यों दुःख है? आत्मा परमात्मा का आविर्भाव होता तब फिर दुःख का वेदन ही नहीं होता न ! आत्मा रियल व्यू पोइन्ट से निराकारी और रिलेटिव व्यू पोइन्ट से साकारी है। सिद्धगति में आत्मा चरमशरीर के देह प्रमाण से एक तिहाई कम होकर दो तिहाई जितने आकार का रह जाता है, स्वभाव से निराकारी होने के बावजूद ! शुरूआत में निरंजन- निराकार भगवान की भजना तो जो मनुष्य देह में प्रकट हुए हैं, ऐसे 'ज्ञानीपुरुष', कि जो साकारी भगवान ही कहलाते हैं, उनकी भजना द्वारा होती है और परिणाम स्वरूप निराकार भगवान की पहचान होती है ! जहाँ अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख, अनंत शक्ति है, अनंत २२
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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