SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-८ बुद्धि चोखी होती है। और अपने लोगों की बुद्धि कैसी है? ढीठ । ये फॉरिनवाले कहते हैं, उसके अनुसार ऐसा हो ही नहीं सकता । मेरी बुद्धि शुरू से ही ढीठ नहीं थी, इसलिए मैं समझ गया कि यह गलत हंगामा खड़ा कर बैठे हैं। बाकी मैं तो, अगर सही हो तो उसे तुरन्त सही कह देता हूँ। और मैं जिस पद पर बैठा हूँ अभी, वहाँ पर मुझे क्या कहना चाहिए? कि जो ‘है' उसे 'हाँ' कहना चाहिए और 'नहीं' है उसे 'ना' कहना चाहिए। अगर ‘ना' नहीं कहेंगे तो लोग उल्टे रास्ते पर चलेंगे। नहीं पूछेंगे तो मुझे कोई हर्ज नहीं है । लेकिन पूछेंगे तो मुझे बोलना चाहिए कि यह 'करेक्ट' है या नहीं । १८८ देखो न, यमराज को बीच में डाल दिया है न? इस नाम का कोई भी नहीं है, यमराज नाम का कोई जीव था ही नहीं। वे तो नियमराज थे। अब ऐसा सब घुसा दिया है। जो-जो राजमहल हमने बनाए थे न, वे सभी अब पुराने हो गए हैं, इसलिए उल्टा फल दे रहे हैं, इसलिए इनका 'डिमोलिशन' (धाराशयी) करो। क्योंकि अच्छा फल कब तक देते हैं ? नये-नये हों, तभी तक । फिर मध्यम प्रकार का, फिर उससे अर्ध मध्यम प्रकार का और फिर बुरा फल देते हैं। तो अभी ये बुरा फल दे रहे हैं। इसलिए इसे 'डिमोलिश' कर दो। जब तक, जैसे कि जब नया मकान हो तब तक, थोड़े समय तक, ‘हेल्पफुल' रहता है। लेकिन जब पुराना हो जाता है तब सिर पर गिरता है या नहीं? यहाँ से खंभे और यहाँ से छत गिर जाती है, यहाँ से फर्श उखड़ चुका होता है। ऐसी स्थिति अभी हो गई है। यानी कि 'हेल्पफुल' बनना तो न जाने कहाँ गया, कितने ही वर्षों से ये 'हेल्प' नहीं कर रहे हैं। लेकिन लोगों को उलझन में डाल दिया है । और इनमें है कुछ भी नहीं। अब अगर हम पूछें कि ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर क्या हैं? वे कहेंगे, 'भाई, ये देव ही हैं न ।' यह नहीं समझेंगे। यह तो, 'ज्ञानीपुरुष' के अलावा
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy