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________________ आप्तवाणी-८ १८३ रखा है। विष्णु रजोगुण है, महेश तमोगुण है और ब्रह्मा सत्वगुण है। इन तीन गुणों को मजबूत करने के लिए लोगों ने मूर्तियों की स्थापना की है। यानी कि इनकी पूजा करने से ये गुण मज़बूत होंगे। लेकिन उन गुणों का भी धीरे-धीरे नाश हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : तो फिर ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश को पूजने का कोई अर्थ ही नहीं है न? ___ दादाश्री : अर्थ है न! मनुष्य को प्रकृति तो मज़बूत करनी ही चाहिए न! प्रकृति मज़बूत करेगा तो आगे बढ़ सकेगा। रूपक, लौकिक और अलौकिक दृष्टि से प्रश्नकर्ता : शिवालय में अष्टांगयोग के, यम-नियम-आसनप्राणायाम-प्रत्याहार-ध्यान-धारणा और समाधि, इन आठों अंगों के वहाँ पर प्रतीक रखे हैं। कछुआ प्रत्याहार का प्रतीक है, नंदीश्वर आसन कहलाते हैं, पार्वतीजी धारणा है, शंकर महादेव वे समाधि.... दादाश्री : ये सब रूपक हैं। इनमें जितना गहरे घुस चुके हैं न, तो घुसने के बाद हो सके उतना जल्दी अपने घर की तरफ़ निकल जाना है। ये सभी रूपक तो सामनेवाले के फायदे के लिए दिए गए हैं। लेकिन फ़ायदा होगा तो होगा, नहीं तो ऐसे ही रूपक तो रूपक ही रहेंगे। लेकिन इन रूपकों को लोग सत्य मानने लगे हैं। ये ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। यह तो सत्व, रज और तम इन तीन गुणों के रूपक दिए गए हैं। प्रश्नकर्ता : क्रिएटर, प्रिर्जवर और डेस्ट्रोयर।। दादाश्री : हाँ, और तीर्थंकरों की भाषा में यह क्या है, वह आप जानते हो क्या? उत्पाद, व्यय और ध्रौव, यह तीर्थंकरों की भाषा है। ये तीनों शब्द उन सब रूपकों में उलझ गए और रूपकों को तो उस समय के लोग समझे थे। लेकिन काल बदला कि सबकुछ उलझ गया। जो युग होता है
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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