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________________ आप्तवाणी-८ १८१ है और इसीलिए हर कोई ऐसा कहता है। तब मुझे कहना पड़ता है, कठोर शब्दों में कहना पड़ता है कि 'अरे, पत्थर में भी गुण होते हैं।' पत्थर भी चटनी पीसने के काम में आता है या नहीं? प्रश्नकर्ता : हाँ, आता है। दादाश्री : और भाई, सिर्फ आत्मा ही निर्गुण है? इसलिए कठोर शब्दों में ज़रा समझाना पड़ता है न कि ऐसा आप कब तक मानोगे? और ऐसा मानोगे तो आत्मा कब प्राप्त होगा? यानी वस्तुस्थिति में पत्थर में भी गुण हैं। लेकिन आत्मा को इन लोगों ने निर्गुण कहा है, ऐसा सभी लोगों ने कहा है इसलिए पूरी बात ही उल्टी हो गई है। इसलिए फिर मुझे ऐसा कहना पड़ता है कि आत्मा निर्गुण है, यह बात सच है, लेकिन आप अपनी भाषा में ले गए। यानी कि प्रकृति के गुणों से निर्गुण है। प्रकृति का एक भी गुण आत्मा में नहीं है और खुद के गुणों से भरपूर है। अभी वापस यहाँ तक आया है कि आत्मा को निर्गुण आत्मा कहते हैं। अरे, यह पत्थर भी निर्गुण नहीं है इस दुनिया में और आत्मा को निर्गुण कहते हो? लाखों जन्मों के बाद भी आप किस तरह से मूल वस्तु के ठिकाने की तरफ़ मुड़ोगे? पत्थर भी निर्गुण नहीं है। भैंस गोबर करती है न, वह भी निर्गुण नहीं है, वह भी काम में आता है न? लीपने के काम में नहीं आता? यानी कि हर एक वस्तु गुणवाली है। गुण काम करता है न? धूल भी काम की है या नहीं? अब अनादि काल से इसी तरह की भूलें चली आ रही हैं और उससे लोगों को मार पड़ती है न! धर्म में भूल चलेगी ही नहीं। धर्म में भूल होनी ही नहीं चाहिए। और भूल होगी तो क्या होगा? और यह तो विज्ञान है। इसमें ज़रा-सी भी भूल हो जाए तो हो चुका, प्रमाण (अनेक धर्मों द्वारा वस्तु का अनेक रूपों से निश्चय किया जाए तो वह प्रमाण कहलाता है) ही बदल जाएगा। आपको निर्गुण समझ में आया न?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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