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________________ १५६ आप्तवाणी-८ तो सच्चिदानंद बन जाता है और लुटेरे को भजे तो लुटेरा बन जाता है। जीव का स्वभाव ऐसा है कि जिसे भजे वैसा बन जाता है। मुक्त पुरुष को भजे तो मुक्त हो जाता है और बंधे हुए को भजे तो बंधनवाला बन जाता है। यानी कि जो सच्चिदानंद स्वरूप हो चुके हैं, यदि उन्हें भजोगे तो आप भी उन जैसे बन जाओगे। दशा फेर के लक्षण प्रश्नकर्ता : जीवात्मा में से अंतरात्मदशा की तरफ़ जाता है तब उसमें कौन-से परिवर्तन ध्यान देने योग्य होते हैं? दादाश्री : जीवात्मा में से अंतरात्मा बनता है, तब कौन-कौन से परिवर्तन ध्यान देने योग्य होते हैं, ऐसा? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : उसकी वृत्तियाँ बाहर जाने से रुक जाती हैं, जो वृत्तियाँ बाहर जा रही हों कि 'ऐसा करूँ, वैसा करूँ, ऐसा करें, वैसा करें' वे सब वापस लौटती हैं। जैसे कि ये गायें सुबह चरने जाती हैं, और फिर शाम को वापस लौटती हैं न? उसी तरह वृत्तियाँ वापस लौटने लगती है। तब हमें समझना चाहिए कि यह भाई 'शुद्धात्मा' होने लगा है। वृत्तियाँ जो बाहर भटक रही थीं, वे भटकनी बंद हो गई और खुद के घर की तरफ़ वापस लौटने लगीं। आप अपनी वृत्तियों को देखोगे, जाँच करोगे तो आपको भटकती हुई लगेंगी कि यह तो एक इस तरफ़ भटक रही है, और एक इस तरफ़ भटक रही है, बड़े-बड़े नाश्ताहाउस होते हैं न, वहाँ भी भटककर आती है, इस तरह भटकती हैं या नहीं भटकती? बड़े-बड़े अच्छे नाश्ताहाउस हों और एक दिन चखकर आ गया हो तो वह वृत्ति वापस वहाँ भटकती है। यानी सभी वृत्तियाँ भटकती रहती हैं और अंतरात्मा हो गया कि वृत्तियाँ वापस लौटने लगती हैं। प्रश्नकर्ता : अंतरात्मा में से परमात्मा की तरफ़ जब प्रगति होती है तो उस समय कौन-से खास परिवर्तन ध्यान देने योग्य होते हैं?
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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